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(Image Credit: Freepik)
Men'sTalk: आपके दिमाग में एक मर्द की छवि ऐसी ही होगी जो कम बात, कठोर, मूछें, दाढ़ी, डराकर रखना और महिला को सुनाने की बजाय, उन्हें सुनाता होगा। ऐसे व्यक्तित्व को ही समाज में 'मर्द' समझा जाता है। इसमें इनका कोई कसूर नहीं है। बचपन से ही उन्हें ऐसा सिखाया जाता है कि कैसे अपने अंदर की 'स्त्री' को मार कर ऐसा मर्द बनना है जो अपनी भावनाओं को व्यक्त न करें। क्यों मर्दों के साथ ऐसा अत्याचार किया जाता है कि उन्हें अपनी कोमलता को मारना पड़ता है। उन्हें एक ऐसे व्यक्ति का दिखावा करना पड़ता है जो कई बार वे होते भी नहीं है।
पुरुष अपने अंदर की महिला को क्यों नहीं दिखा सकते?
माँ की तरह नहीं हो सकते
बचपन से ही लड़को को यह सिखाया जाता है कि तुम्हें अपने पिता की तरह बनना है। तुम्हारे कंधों पर घर की जिम्मेदारी होगी। अगर रोना आ भी रहा है तब भी रो नहीं सकते। हर वक्त एक ताकतवर इंसान की तरह दिखाई देना है क्योंकि महिलाएं कमजोर होती है। तुम एक मर्द बनो। क्या आपने कभी किसी को यह कहते हुए सुना है कि लड़के को अपनी माँ की तरह होना चाहिए? नहीं, कोई ऐसे नहीं बोलता है। ऐसा क्यों हैं? एक मर्द जब कमजोर दिखता है तो उसे कहा जाता क्या औरत की तरह बन रहे हो? मर्द बनो, उसके अंदर माँ की तरह ममता, कोमलता और सबका ख्याल रखना जैसी बातों को पैदा नहीं होने दिया जाता।
लड़कों को कभी माँ जैसा बनना नहीं सिखाया जाता क्योंकि इससे वह महिला जैसा लगने लगेगा। इसे शर्मिन्दगी की बात माना जाता है। एक लड़के का लड़कियों की तरह मेकअप करना, कपडे पहनना, उनके साथ बात करना, लड़कियों को बराबरी का दर्जा देना, माँ जैसे खाना बनाना, सबका ध्यान रखना इस सोसाइटी को अच्छा नहीं लगता है। जब लड़का इन सब चीज़ों को करता है या चाहता है उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है जिससे उसे अपनी अंदर की सॉफ्ट साइड को मार देना पड़ता है।
अंदर को लड़की को मार देना
हर मर्द के अंदर एक 'स्त्री' छुपी होती है जिसे कभी बाहर निकलने नहीं दिया जाता। उसे कठोर और इमोशंस को छुपाने में इतना मजबूत कर दिया जाता है कि वो स्त्री की इज्जत करना ही भूल जाता है। उसे लगने लगता है कि अगर मैं अपने इमोशंस को व्यक्त करूंगा तो मैं कमजोर दिखूंगा। कमजोर तो सिर्फ स्त्रियां होती है। इस तरह वह कभी भी अपने अंदर की महिला को दिखा ही नहीं पाता। ऐसे कितने ही लड़के जिन्हें मेकअप करना पसंद है वह कभी कर ही नहीं पाए क्योंकि समाज ने इसे भी जेंडर के साथ जोड़ दिया। हर चीज जिसमें उनके अंदर की वह एक कोमल साइड है वह बाहर ही नहीं आ पाती। कितने मर्दों को खाना बनाने का शौंक होता है उसे भी माँ-बाप मार देते है।
टॉक्सिक मर्दानगी
जब एक पुरष किसी औरत को पीटता है, उसे सिर्फ सेक्सुअल ऑब्जेक्ट समझता है और उनके इमोशन्स की वैल्यू नहीं करता है। उसे लगता औरत सिर्फ मेरे 'पैर की चप्पल' के बराबर है। तब हमारा समाज बहुत ज्यादा खुश होता है। ऐसे 'अब्यूसिव मर्दों' को देखकर हम बहुत खुश होते हैं। अगर कोई मर्द टॉक्सिक है और यह समाज पुरष-प्रधान है इसमें हमारे समाज का कसूर है क्यूंकि हमने ढांचा ही ऐसे तैयार किया कि मर्द अपनी कोमल साइड को कभी दिखा नहीं ही पाए। उसके ऊपर कठोर बनने का प्रेशर डाल दिया है जो गलत तरीके से हमारे समाज को प्रभावित करता है।