Ab Soch Badlo Yaar: हमारे समाज में अगर कोई लड़की 30 से पहले या उसके बाद भी शादी नहीं करती तो उसे ऐसे देखा जाता है कि जैसे वो एक बोम्ब है, जिसे अभी डिफ्यूज न किया तो पता नहीं कहाँ फट जाए। सोसाइटी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सिंगल रहना आपकी मजबूरी है या आपकी अपनी चॉइस, उन्हें बस इतना पता है कि अगर एक लड़की की शादी नहीं हो रही तो उसमें ज़रूर कोई कमी होगी। उन्हें आपके अंदर कोई जेन्युइन कमी न भी मिले, फिर भी वे कहीं न कहीं से आपकी कमी निकाल ही लेते हैं, जिसकी वजह से आपकी शादी नहीं हो रही।
क्यों सिंगल महिलाओं को सम्मान का हक़ नहीं?
(Why Single Women Are Not Respected In Society?)
लोगों को लड़की का मैरिटल स्टेटस 'सिंगल' होने से इतनी प्रॉब्लम होती है कि उन्हें और कुछ नहीं मिलेगा तो खुद से बातें बनाने लगते हैं। आइए जानते हैं कि यह समाज सिंगल महिलाओं को किस-किस तरीके से जज करता है।
सिंगल महिलाओं को सोसाइटी से आने वाली दिक्कतें
आस-पास के लोग और रिश्तेदार हमेशा लड़कियों और महिलाओं के सिंगल रहने पर चिंतित होने लगते हैं और सोचते हैं कि इसकी कुंडली में कुछ दोष होगा, इसीलिए तो 35 तक सिंगल है। उन्हें इस चीज़ से कोई मतलब नहीं कि वो महिला सिंगल रहना चाहती है या फिर उसकी कोई मज़बूरी है। उन्हें उस कारण को नहीं जानना बस बैठ कर बातें बनानी हैं।
अगर औरत का डाइवोर्स हो जाए, तो लोगों को लगता है कि पक्का इसी की कोई ऐटिटूड प्रॉब्लम होगी जो इसकी अपने पति और ससुराल में किसी से नहीं बनी। उन्हें इस बात का कोई मतलब नहीं कि उसका ससुराल कैसा था, पति की कोई गलती हो सकती है या फिर कोई और दिक्कत हो, उन्हें तो बस अपना फालतू ओपिनियन घुसाना है।
जब कोई महिला विडो हो जाए, तो लोग उसे तरस भरी नज़र से देखेंगे। वे यह नहीं सोचेंगे कि लड़की किसी और रिश्ते के लिए तैयार है या नहीं, बस उसे दोबारा शादी करने की सलाह देते रहेंगे। इसमें उनका एक ही लॉजिक होता है कि दोबारा शादी कर लेगी तो इसकी लाइफ आसान हो जाएगी।
सोसाइटी के पास यह जताने के हमेशा बहुत सारे रीज़नस होते हैं कि अगर आपकी शादी नहीं हुई या आप सिंगल हैं तो आपके अंदर कुछ तो कमी है या कुछ तो आपकी ज़िंदगी में गलत है। लोग यह समझते हैं कि ज़िंदगी में कोई मर्द न होने के कारण यह ज़िम्मेदारी उनकी है कि वे आपको गाइड या प्रोटेक्ट करें।
देश के कई हिस्सों में आज भी औरत को कमज़ोर समझा जाता है जो अपनी लाइफ को बिना किसी मर्द के संभाल नहीं सकती। इसलिए उसे 'मोरल पोलिसिंग' का सामना करना पड़ता है। 'तुम कहाँ जाती हो', 'क्या कपडे पहनती हो', 'किस से बातें करती हो' या 'क्या बातें करती हो', इन सब चीज़ों पर सिंगल औरत के आस-पास के लोगों की कड़ी निगरानी होती है। अगर ये औरतें उन पैमानों पर खरी नहीं उतरती हैं तो उनके करैक्टर पर सवाल उठाये जाते हैं।
Ab Soch Badlo Yaar
अगर कोई महिला अभी या कभी भी शादी नहीं करना चाहती, डाइवोर्स या पति की डेथ के बाद सिंगल रहना चाहती है तो यह उनकी अपनी चॉइस है। इसमें किसी को भी सफाई या एक्सप्लनेशन की ज़रूरत नहीं। उन्हें अपनी फाइनान्शियल, सोशल, पर्सनल, सेक्शुअल और दूसरी हर ज़रूरत की खबर है और वे अपने हिसाब से अपनी ज़रूरतों को पूरा करने का हक़ रखती हैं।
सिंगल महिला क्या करती है, कहाँ जाती है, रात को कितने बजे लौटती है, इन चीज़ों पर कमैंट्स करने या नज़र रखने का हक़ किसी को नहीं। अगर महिला की ज़िंदगी में कोई मर्द नहीं है, तो वो किसी की प्रॉपर्टी नहीं बन जाती, जो सोसाइटी उसकी 24 घंटे और 7 दिन उसकी निगरानी करे। सोसाइटी यह भूल जाती है कि जो औरत जॉब करती है, पैसे कमाती है और अपनी एवं अपने परिवार का ध्यान और उनकी ज़रूरतों को पूरा करती है, उसे अच्छे-बुरे की पहचान भली-भांति होती है।
अगर सिंगल महिला को इस सोसाइटी से कुछ चाहिए तो वो है सम्मान। क्या सिर्फ शादी-शुदा होना ही एक औरत को सोसाइटी में इज्ज़त और रेस्पेक्ट का पात्र बनाता है? क्या एक औरत की उपलब्धियां, खूबियाँ, अच्छाइयाँ हुए मेहनत की उसके मैरिटल स्टेटस के आगे कोई वैल्यू नहीं है? जब समाज उस सिंगल महिला को सम्मान नहीं दे पाती, तभी दूसरे लोग उनकी लाइफ में इंटरफेर करने का अपना पूरा हक़ समझते हैं। आइए हम ठान लेते हैं कि आज से हम हर औरत का सम्मान करेंगे, उनके मैरिटल स्टेटस का नहीं।