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अविवाहित महिला के प्रेग्नेंट होने पर क्यों इतना बवाल मच जाता है?

प्रेगनेंसी महिलाओं तब तक अच्छी लगती है जब तक वह शादी के बाद हो और शादी में भी बहुत सारी कंडिशन होती हैं।अगर आपको यह कहा जहां कि महिला शादी से पहले प्रेगनेंट है तब बहुत बड़ा बवाल बन जाता है।

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Rajveer Kaur
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(Image Credit: IndiaToday)

Why Unmarried Pregnancy Is Big Issue: प्रेगनेंसी महिलाओं तब तक अच्छी लगती है जब तक वह शादी के बाद हो और शादी में भी बहुत सारी कंडिशन होती हैं।अगर आपको यह कहा जहां कि महिला शादी से पहले प्रेगनेंट है तब बहुत बड़ा बवाल बन जाता है। समाज में जिनका उस महिला से सम्बंध वे भी अपनी राय देने आ जाता है। हर कोई महिला को छोटी नज़रों से देखता है। उसका समाज में जीना इतना कठिन बन जाता है कि कई बार महिलाएँ मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाती हैं।

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अविवाहित महिला के प्रेग्नेंट होने Unmarried Pregnancy पर क्यों इतना बवाल मत जाता है? 

किसी का महिला पर कोई अधिकार नहीं है

गर्भ रखना है या गर्भपात करना है ये एक महिला की चॉईस है। इसमें किसी का चाहे वे उसका पार्ट्नर हो या फिर परिवार किसी को उसके लिए फ़ैसले लेने का कोई हक़ नहीं बनता है। महिला का शरीर है बच्चा उसने 9 महीने अपने पेट में रखना है तों फ़ैसला भी उसका है उसे क्या करना है। इस पर किसी का कोई दबाव या फिर ज़बरदस्ती नहीं होनी चाहिए।

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यह बिल्कुल नोर्मल है

प्रेगनेंसी शादी के पहले हो या बाद दोनों ही नोर्मल है। इसमें कुछ भी बुराई या इज्जत की बात नहीं है। एक महिला सेक्स का आनंद कभी भी ले सकती है। इसके साथ उसकी मर्ज़ी है शादी के पहले बच्चे करना या बाद में। अगर वे शादी जैसी लम्बी कमिटमिट किए बिना ही माँ बनना चाहती है उसमें किसी का ऐतराज नहीं चाहिए। माँ बनने के लिए शादी की मोहर होना ज़रूरी नहीं है।

मर्दों के लिए नज़रिया अलग

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समाज में मर्दों के लिए इस बात पर  नजरिया बहुत अलग होता है उन्हें स्वीकार भी कर लिया जाता है और वे आजाद भी होते हैं। कोई उन्हें जज भी नहीं करता लेकिन सवाल लड़की पर उठाए जाते हैं। चरित्र लड़की का गलत समझा जाता है। यह हमारी सोसाइटी में पितृसत्ता सोच का नतीजा है। इसके साथ ही यह दर्शाता है कि आज भी कैसे समाज में स्त्रियों और मर्दों के लिए अलग-अलग मानदंड है।

पार्ट्नर छोड़ के चला जाता हैं

बहुत बार ऐसा भी देखा गया है जब रिलेशनशिप में पता चलता है की लड़की प्रेग्नेंट है तो पार्टनर लड़की को अकेला छोड़कर चला जाता है। कई बार लड़कियां अकेले ही इस कंडीशन से लड़ती हैं।एक तरफ समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता दूसरी तरफ परिवार की तरफ से भी सवाल उठाए जाते हैं। उनका भी साथ छूट जाता है।बहुत ही मुश्किल स्थिति में    महिलाएं आ जाती है।

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अंत में यही है कि कब समझ में महिलाओं को स्वीकार करना चाहिए उनके हर फैसले का सम्मान होना चाहिए और लड़का और लड़की के लिए अलग-अलग मानदंड नहीं होनी चाहिए। शादी के पहले या शादी के बाद मन बना इतना बड़ा मुद्दा नहीं है जितना उसे बना दिया है। यह सिर्फ नजरिए की बात है।

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