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Women: क्या जीवन में महिलाओं का उद्देश्य सिर्फ बच्चे पैदा करना है?

हमारे समाज में महिला आज भी सेकेंडरी है। यह समाज आज भी पुरुष प्रधान है। यहां पर महिलाओं के हकों की बात बहुत कम की जाती है। आज भी बहुत से घरों में महिला सिर्फ बच्चे पैदा करने वाली और उनका पालन पोषण करने वाली होती है।

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Rajveer Kaur
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Why Women Are Expected To Have Children: हमारे समाज में महिला आज भी सेकेंडरी है। यह समाज आज भी पुरुष प्रधान है। यहां पर महिलाओं के हकों की बात बहुत कम की जाती है। आज भी बहुत से घरों में महिला सिर्फ बच्चे पैदा करने वाली और उनका पालन पोषण करने वाली होती है। इससे ज्यादा उनके घर में कोई भी रोल नहीं है। इसमें महिला का भी कोई दोष नहीं है क्योंकि बचपन से उन्हें भी यह ही बताया जाता है कि एक महिला की जीवन में सबसे बड़ा सुख बच्चे पैदा करना ही है। इसमें उसकी चॉइस है या नहीं यह मैटर नहीं करता है। मां की ममता का अंदाजा उसके बच्चे पैदा करने से लगाया जाता है। इसमें उसकी सेहत और  मेंटल हेल्थ आदि इन सब का नुकसान सही है लेकिन महिला का बच्चे पैदा करने के लिए न कहना किसी भी तरीके से जायज नहीं माना जाता है।

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क्या जीवन में महिलाओं का उद्देश्य सिर्फ बच्चे पैदा करना है?

सदियों से ही चाहे खास हो या कोई आम सभी महिलाएं बच्चे पैदा करती हैं। इसके लिए अपना करियर और पर्सनल जिंदगी भी दाव पर लगा देती है। लेकिन पुरुष के लिए बच्चे कभी भी बाधा नहीं बनते हैं। उसे अपना पितृत्व दिखाने के लिए अपनी जॉब को नहीं छोड़ना पड़ता या अपने करियर को दाव पर नहीं लगाना पड़ता। उन्हें अपनी ख्वाहिशों को नहीं मारना पड़ता लेकिन बात जब औरत की आती है तब उसे जज करते हैं। लोगों द्वारा बातें बनाई जाती है जैसे अपने छोटे से बच्चे का घर छोड़कर ऑफिस जा रही हो, यह कैसी माँ है। इसे बच्चे से ज्यादा अपने कैरियर से प्यार है। ऐसी मां कौन सी है जो अपने बच्चों को दूसरों के हाथों में छोड़ देती है लेकिन पति को यह बात कोई नहीं बोलता है। यह दोगलापन कब तक समाज में चलेगा? कब तक हम महिलाओं के प्रति सोच को लेकर अपनी अपना दायरा बड़ा करेंगे? हम औरत के रिप्रोडक्टिव से ऊपर क्यों नहीं सोचते हैं? उसकी यौन मानसिक और शारीरिक जरूरतों का ख्याल कब रखेंगे।

महिलाएं जिम्मेदारियों से आजाद नहीं हो सकती?

एक पुरुष महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाता है वह कंडोम का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। इसका अंजाम एक महिला को भुगतना पड़ता है। उसे एसटीडी और अनचाहे गर्भ से गुजरना पड़ता है। इसके लिए उसे गर्म निरोधक गोलियां खानी पड़ती है जो बहुत सारे साइड इफेक्ट से जुड़ी होती हैं। कब तक महिलाएं ऐसे अन्याय घरों की चार दिवारी के पीछे सहन करती रहेंगी। उनका मन अपनी जिंदगी को खुलकर जीने का  करता है। वह भी परिवार की जिम्मेदारियां से मुक्त नहीं होना चाहती है। वह भी चाय का कप पड़कर बालकनी में 10 मिनट ज्यादा खड़ी हो सकती हैं। उसे ही सिर्फ जिम्मेदारियां नहीं निभानी है। यह सवाल आज के समाज से पूछे जा रहे हैं। जिसका जवाब उनके पास कुछ नहीं है। क्यों औरत को ही करना पड़ेगा महिला और पुरुष दोनों बराबर मिलाकर क्यों नहीं कर सकते?

#Women children
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