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Honoring the Complexity of Womanhood: हमारे समाज में हमेशा ही महिला के अस्तित्व को उसकी भूमिका से तय किया है। हम महिला को सिर्फ इस कारण इज्जत देना चाहते हैं क्योंकि उसका रिश्ता हमारे साथ जुड़ा हुआ है। हमारा नजरिया महिला की भूमिका पर आधारित होता है। हमें लगता है कि महिला के साथ कुछ गलत सिर्फ इसलिए नहीं होना चाहिए क्योंकि वह हमारी पत्नी, बहन या फिर माँ है, लेकिन हम यह कभी नहीं कहते हैं कि एक महिला के साथ इसलिए कुछ गलत नहीं होना चाहिए क्योंकि वह सिर्फ एक "महिला" है? चलिए आज हम इस विषय पर चर्चा करते हैं-
महिला दिवस पर विशेष: महिला का अस्तित्व मां या बेटी की भूमिका से कहीं ज्यादा
हमारे समाज को यह बात समझने की बहुत ज्यादा जरूरत है कि एक महिला का अस्तित्व उसके रिश्ते की भूमिका तक सीमित नहीं है। उसके अपने सपने और पहचान है। वह भी स्वतंत्र पहचान की हकदार है। उसकी जिंदगी सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि उसका किसी के साथ क्या रिश्ता जुड़ा हुआ है। उसकी इज्जत इन रिश्तों के ऊपर निर्भर नहीं है। इस तरह के व्यवहार से हम महिला की पहचान ही खत्म कर देते हैं। हमारी बातचीत में ही यह झलकता है कि कैसे हम महिला की पहचान को सिर्फ मां, बेटी, पत्नी या बहन के रिश्ते तक ही सीमित कर देते हैं।
क्या रिश्तों में बाँधकर महिला से उसकी इंसानियत छीन लेना सही है?
हमारे इस रवैये से महिला की खुद पर "एजेंसी" खतम जो जाती है। ऐसी पितृसत्तात्मक सोच के कारण महिलाएं बाधित हो जाती हैं और इन रिश्तों में बंधकर रह जाती हैं। हमें समझने की जरूरत है कि इन रिश्तों से उपर महिला एक इंसान है और उसकी अपनी एक पहचान है। कोई भी रिश्ता या फिर भूमिका उसकी वर्थ डिसाइड नहीं कर सकता है या फिर इससे यह तय नहीं हो सकता है कि महिला के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए।
आंकडे क्या बताते हैं?
हाल ही में, 2024 के लिए Global Gender Gap रिपोर्ट का 18वां एडिशन World Economy Forums की तरफ से जारी किया। इसमें विश्व भर की 146 अर्थव्यवस्थाओं में लैंगिक समानता के बारे में बताया गया है।
इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 129वें स्थान पर है। इस बार भारत दो पायदान नीचे खिसक गया है। दक्षिण एशिया में, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और भूटान के बाद भारत पांचवें स्थान पर है। पाकिस्तान इस क्षेत्र में सबसे आखिरी स्थान पर है। भारत आर्थिक समानता के सबसे कम स्तर वाले देशों में से एक है, क्योंकि अनुमानित कमाई गई आय में 30% से कम लिंग समानता है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2024 तक अपने जेंडर गैप को 64.1% तक कम कर लिया है लेकिन अभी भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
सशक्तिकरण के रास्ते में एजेंसी बहुत अहम
महिलाओं की सशक्तिकरण के रास्ते में एजेंसी बहुत ज्यादा जरूरी है। एजेंसी से महिलाओं के पास यह ताकत आती है कि वह स्वतंत्र रूप से अपने फैसले ले सकती हैं। उनका अपनी लाइफ के ऊपर कंट्रोल होता है और अपनी चॉइस होती है लेकिन भारतीय महिलाओं के पास यह बहुत कम होती है, हालांकि समय के साथ बहुत बदलाव आया है लेकिन आज भी महिलाओं के पास उतनी एजेंसी नहीं है।
उनके फैसले हमेशा दूसरों से प्रभावित होते हैं जैसे समाज क्या सोचेगा या फिर एक लड़की को कैसे होना चाहिए। इसके साथ ही अकेले महिलाओं के ऊपर ही केयरगिविंग की जिम्मेदारी होती है या फिर उन्हें ही कैरियर और परिवार के बीच एक चुनना पड़ता है।
सबसे जरूरी यह है कि महिलाओं को उनकी भूमिका से अलग करके देखना बहुत ज्यादा जरूरी है। इससे ही हमेशा महिलाओं को यह दिखाया जाता है कि उनकी जगह किचन में है या फिर वह सिर्फ घर के काम करने के लायक है। आज भी अगर महिलाएं घर से बाहर जाकर काम करने लग गई हैं या फिर उच्च पोस्टों पर नियुक्त होने के बावजूद भी उन्हें यह सुनने को मिलता है कि वह इतनी समर्थ नहीं लेकिन सिर्फ लड़की होने की वजह से उन्हें मुकाम मिला है।
एक महिला, समाज द्वारा दी गई भूमिका या लेबल तक सीमित नहीं ब्लकि एक पूर्ण व्यक्ति है। समाज अक्सर महिलाओं की भूमिका को बांधने की कोशिश करता है, लेकिन यह बहुत ज्यादा सरल है। महिलाएँ किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह, जटिल होती हैं, उनकी अपनी महत्वाकांक्षाएँ, बुद्धि और क्षमताएँ होती हैं। इसे पहचानना, उन्हें सम्मान देने के बराबर है।