Decriminalisation Of Section 377: 6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने भारत का ऐतिहासिक फैसला जारी किया। कोर्ट के फैसले से न सिर्फ सदियों पुरानी सामाजिक बेड़ियां चकनाचूर हो गई बल्कि एक बड़े वर्ग को प्यार करने की आजादी भी मिल गई। आखिरकार कोर्ट ने दो एडल्ट्स यानी दो बालिग लोग जो एक दूसरे से प्यार करते हैं और साथ रहना चाहते हैं को सहमति दे दी।
सीधे और सरल शब्दों में कहा जाए तो होमोसेक्सुअलिटी को लीगल करार दिया गया है। इसी के साथ अंग्रेजों के समय से चले आ रही (IPC) की धारा 377 के उस प्रावधान को decriminalise कर दिया गया जो एक ही जेंडर के दो लोगों को संबध बनाने की इजाजत नहीं देता था।
क्या आप जानते हैं धारा 377 किसकी देन है?
IPC की धारा 377 के अनुसार अंग्रेजों के शासन के समय 1861 में समलैंगिकता को अपराध घोषित किया गया था। इसे अप्राकृतिक (unnatural) अपराध घोषित कर दिया गया और कहा गया कि जो भी अपनी मर्जी से किसी आदमी, औरत या जानवर से प्रकृति के नियमों के खिलाफ जाकर फिजिकल रिलेशन बनाएगा, उसे Lifetime Jail की सजा दी जाएगी। दशकों तक इसे अपराध माना गया और इस वजह से ये कानून homosexual लोगों की भावनाओं का गला घोंटता रहा।
दिल्ली HC ने किया था खारिज पहली कोशिश को
इसे लेकर विरोध तो होता रहा लेकिन कानूनन इसे रास्ते से हटाने के लिए पहली कोशिश साल 2001 में की गई। AIDS भेदभाव विरोध आंदोलन ने दिल्ली हाई कोर्ट में इस Colonial Act को चुनौती दी। इसके बावजूद भी, कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया और संबंधों की legalisation की लड़ाई और ज्यादा लंबी होती गई।
सुप्रीम कोर्ट ने भी नकार दिया
दिल्ली High Court के फैसले से कुछ साल के लिए आजादी का एहसास हुआ लेकिन साल 2013 में कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर खारिज कर दिया कि कानूनी रूप से इसकी रक्षा नहीं की जा सकेगी। नाज फाउंडेशन ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की लेकिन कोर्ट ने उसे भी खारिज कर दिया।
क्या अब Same Sex Couple एक दूसरे से शादी कर सकते हैं?
सेक्शन 377 को भले ही गलत ठहरा दिया हो लेकिन अभी तक समलैंगिक कपल एक दूसरे से भारत में रहते हुए विवाह नहीं कर सकते। इसके तहत काफी तरह की समस्याओं से एक समलैंगिक कपल को गुजरना पड़ता है। अक्सर यह भी देखा गया है कि कुछ कपल्स तो विदेश का रुख भी कर लेते हैं लेकिन सोचनीय विषय यह है कि उन कपल्स का क्या होगा जो फाइनेंनशियली काबिल नहीं है? आज के दिन भारत गतिशील देशों में आता है लेकिन अभी तक भारत इतनी ऊंचाइयों पर नहीं आया है कि समलैंगिक विवाह को वैध ठहरा सकें।