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जानें क्या है Sapinda Marriage और भारत में इसके नियम और कानून?

रिलेशनशिप: अधिकारों के मुताबिक विवाह में कोई भी जाति, धर्म बाधा नहीं बन सकते लेकिन वहीं कुछ ऐसे रिश्ते हैं जिनसे आप शादी नहीं कर सकते। ऐसी शादी को ही सपिंड विवाह कहा जाता है।

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Ruma Singh
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(Credit Image- File Image)

What Is Sapinda Marriage? संविधान बनने के बाद देश के नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं। इन मौलिक अधिकारों के तहत कोई भी लड़का-लड़की एक दूसरे से विवाह कर सकता है। अधिकारों के मुताबिक विवाह में कोई भी जाति, धर्म बाधा नहीं बन सकते लेकिन वहीं कुछ ऐसे रिश्ते हैं जिनसे आप शादी नहीं कर सकते। ऐसी शादी को ही सपिंड विवाह कहा जाता है। सपिंड विवाह एक ऐसी शादी होती है, जिसमें अपने नजदीकी रिश्तेदार से विवाह किया जाता है। सपिंड का अर्थ होता है जिसमें एक ही खानदान के लोग एक ही पितरों का पिंडदान करते हैं।

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क्या है सपिंड विवाह?

सपिंड विवाह उसे कहते हैं जब एक ही पिंड में लोग शादी करते हैं। भारत में हिंदू विवाह एक्ट के तहत ऐसी शादी को अमान्य माना जाता है। बता दें कि हिंदू एक्ट 1955 की धारा 3(f)(i) आई के अनुसार कोई भी हिंदू धर्म का व्यक्ति वैसे इंसान से शादी नहीं कर सकता जो उसके मां के तरफ से उनके तीन पीढियां के अंदर आता हो और वहीं पिता की ओर से यह कानून पांच पीढ़ियों पर लागू होता है। इस कानून के मुताबिक यह ऐसा शादी है जहां वैवाहिक वर और वधू का एक तय सीमा के अंदर एक ही पूर्वज होता है। समाज में इस रिश्ते को एक खराब रिश्ते के तौर पर देखा जाता है।

क्या बताते हैं आंकड़े?

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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े के मुताबिक भारत में अंतर पारिवारिक शादियों में वृद्धि हुई है। यह 1992-93 में जहां 9.9 फ़ीसदी था। वहीं 2019-21 में 10.8 फ़ीसदी देखने को मिला है। आंकड़े बताते हैं कि 15 से 49 आयु वर्ग की 8 फ़ीसदी महिलाओं की शादी खुद के चचेरे या ममेरे भाई से हुई हैं। बता दें कि कुछ खास समुदाय में सपिंड विवाह का रिवाज है, जिसे न्यायालय द्वारा मान्यता दी जा सकती है। इसके मुताबिक देश भर में तमिलनाडु सपिंड विवाह में पहले स्थान पर है। दूसरे पर कर्नाटक। इन राज्यों में चार युवती में से एक की शादी अपने रक्त संबंधी से की जाती है।

सपिंड विवाह का क्या प्रभाव पड़ता है बच्चे पर?

समाजशास्त्रियों के मुताबिक इस विवाह से होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। एक ही पूर्वज होने के कारण माता-पिता अपने बच्चों को घातक जीन विरासत में दे सकते हैं। इससे संबंधित मामलों में जन्म के बाद बच्चों में बाल रोग उत्पन्न होते हैं। बच्चों में मेटाबॉलिज्म से संबंधित दोषों के साथ नवजात शिशु में आनुवंशिक विकास ज्यादा होते हैं।

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क्या है इसे लेकर भारत में कानून? 

भारत में सपिंड विवाह को लेकर कानून हिंदू विवाह एक्ट 1955 द्वारा शासित होते हैं, जो हिंदुओं पर जैन और सिख पर लागू होते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 3(G) के तहत सपिंड विवाह अमान्य है। इस अधिनियम के तहत कोई व्यक्ति अपने मां की ओर से भाई-बहन (पहली पीढ़ी), अपने माता-पिता (दूसरी पीढ़ी), अपने दादा-दादी (तीसरी पीढ़ी) से किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं करता जो इन तीन पीढ़ियों के वंश को सांझा करता हो। यदि कोई सपिंड विवाह करता है तो उसे हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 11 के तहत न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया जाता है। वहीं 1955 की धारा 18 के तहत कारावास और जुर्माना सहित दंड दिए जाते हैं।

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