Are Schools Giving Your Child Unnecessary Stress: आपके बच्चे सुबह जल्दी उठते हैं और न चाहते हुए भी हर दिन स्कूल जाते हैं, जहाँ उन्हें बहुत कौंपेटेटिव माहौल का सामना करना पड़ता है। होमवर्क न करने का तनाव, सबसे अच्छे अंक लाने का तनाव, जीवन में कुछ बन जाने का तनाव उन्हें मानसिक रूप से कमजोर करने लगता है। सवाल ये है कि क्या वाकई बच्चों को इतना तनाव लेने की ज़रूरत है? स्कूल और घर दोनों जगह इस तरह का व्यवहार बच्चों की कुछ नया सीखने की प्रबल इच्छा को ख़त्म कर देता है और उन्हें डरपोक और चिडचिडा बना देता है।
क्या स्कूल आपके बच्चों को फ़िज़ूल का तनाव दे रहे हैं?
1. अपमान का डर
शिक्षकों के कड़वे शब्द बच्चे के सैल्फ़-ऐसटीम को कुचल सकते हैं। एक शिक्षक का काम अपने विद्यार्थियों को हतोत्साहित करना नहीं बल्कि उनकी क्षमताओं को निखारना होना चाहिए। लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता। अधिकांश स्कूल डाँटने और मारने का फार्मूला अपनाकर आपके बच्चों के अंदर जुनून और उत्साह को खतम कर रहे हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं।
2. होमवर्क करेंगे तो खेलेंगे कब?
खेलने की उम्र में अगर बच्चों को सिर्फ किताबी कीड़ा बना दिया जाए तो वे आजीवन सिर्फ रेंगेंगे ही, और कभी भी आजाद पक्षी की तरह उड़ नहीं पाएंगे। शारीरिक गतिविधि डोपामाइन और एड्रेनालाईन हार्मोन को संतुलित करती है, जिससे तनाव और अवसाद कम होता है। स्कूलों में पढ़ाई होनी चाहिए, लेकिन इसे बच्चों के स्वास्थ्य से बढ़कर अहमियत न दें। सोचिए, आपका बच्चा बचपन में होमवर्क में फंसा रहेगा और अंततः बड़े होने के बाद किसी ऑफिस के काम में भी फंस कर ही रह जाएगा, तो आखिर वह जीवन का आनंद कब उठाएगा?
3. “रिक्शावाला बन जाओगे” का ताना
ऐसे ताने हमारी सदभावना को नष्ट कर देते हैं। क्या रिक्शा-चालक इंसान नहीं है? इसी तरह हमें बचपन से भेद-भाव करना सिखाया जाता है। वैसे देखा जाए तो शायद एक रिक्शा-चालक को एक कॉर्पोरेट कर्मचारी की तुलना में कम तनाव ही होता होगा। यदि स्कूल के शिक्षक, बच्चों को अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं, और उनकी क्षमताओं को निखारना चाहते हैं, तो वे कह सकते हैं कि चाहे एक रिक्शा-चालक की तरह मेहनत करो या एक IITian की, लेकिन जीवन में खुश रहो, तनाव मुक्त रहो।
बचपन एक ऐसा समय होता है जब चिंता होनी ही नहीं चाहिए। बल्कि कुछ नया सीखने की जिज्ञासा होनी चाहिए। एक टीचर होने के नाते अपने विद्यार्थीयों की प्रतिभा को निखारें। उन्हे ऐसा बना दें कि वो सकारात्मकता के सूत्र को जीवन का सहारा बना कर रखें।