भारत में महिला गोल्फ की पायनियर वाणी कपूर ने The Rule Breaker Show पर एक दिलचस्प बातचीत में अपनी यात्रा, संघर्ष और भारतीय खेलों के भविष्य को लेकर अपने विचार साझा किए। उन्होंने खेलों में महिला एथलीटों के योगदान, सामाजिक स्टीरियोटाइप्स और भारतीय खेल व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर गहरा दृष्टिकोण रखा। वाणी की यह बात काफी अहम है—"खेलों में एथलीट की क़ीमत सिर्फ एक पदक तक क्यों सीमित रहती है?"
खेलों में एथलीट की क़ीमत सिर्फ एक पदक तक ही क्यों सीमित है? गोल्फर वाणी कपूर का सवाल
वाणी कपूर की यात्रा की शुरुआत
वाणी कपूर का सफर संघर्ष और दृढ़ संकल्प से भरा हुआ रहा है। उन्होंने डीएलएफ गोल्फ क्लब में एकमात्र लड़की के रूप में गोल्फ खेलना शुरू किया, जहां उनके माता-पिता को कोच से कहना पड़ा था कि वह वाणी पर नज़र रखें क्योंकि वह हमेशा लड़कों के बीच खेलती थीं। आज जब वह डीएलएफ गोल्फ क्लब में जाती हैं और वहां कई लड़कियों को खेल में उत्कृष्टता प्राप्त करते देखती हैं, तो उन्हें यह देखकर खुशी होती है।
गोल्फ को अक्सर "बूढ़े पुरुषों का खेल" कहा जाता था, और स्कूल में भी वाणी को इस खेल को खेलने के लिए ताना-मारा गया। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपनी मेहनत से यह साबित कर दिया कि गोल्फ को महिलाओं का भी खेल बनाया जा सकता है।
महिला गोल्फ़रों का उदय
आज के समय में, भारतीय महिला गोल्फ़र्स पुरुष खिलाड़ियों को कड़ी टक्कर दे रही हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे Ladies European Tour और LPGA पर अपनी पहचान बना रही हैं। वाणी कपूर ने गर्व से कहा, "अगर आंकड़ों को देखें, तो महिलाएं पुरुषों से थोड़ा बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं, हालांकि उनकी संख्या कम है।" उन्होंने अदिति अशोक जैसी खिलाड़ियों की उपलब्धियों को भी रेखांकित किया, जो भारतीय गोल्फ़ को वैश्विक स्तर पर ले जा रही हैं।
भारतीय खेलों की पारिस्थितिकी में चुनौतियाँ
हालांकि महिला एथलीटों की सफलता प्रशंसा योग्य है, लेकिन वाणी कपूर ने भारतीय खेलों में संरचनात्मक और सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता की बात की। उनका मानना है कि खेलों को लेकर हमारे नेताओं का ध्यान अपने फायदे पर ज्यादा होता है, न कि भारतीय खेलों के भविष्य पर। वाणी का कहना था, "अगर स्कूलों में खेलों के लिए सही कार्यक्रम होते और कंपनियां इन खेलों का समर्थन करतीं, तो भारतीय खेलों का भविष्य काफी अलग होता।"
खेलों में कॉर्पोरेट की जिम्मेदारी
वाणी कपूर ने खेलों में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के नए दृष्टिकोण की भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि हर कॉर्पोरेट घराने को एक खेल का समर्थन करना चाहिए। खिलाड़ियों का समर्थन करने से खेलों को जीवनदान मिल सकता है, न कि केवल आयोजनों को। क्रिकेट के साथ तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि क्रिकेटरों को एक मैच खेलकर सब कुछ मिल जाता है, जबकि अन्य एथलीटों के लिए थोड़ी सी फंडिंग भी जीवन बदल सकती है।
महिला एथलीटों की अग्रणी भूमिका
वाणी ने भारतीय खेलों में महिलाओं की बढ़ती पहचान और कौशल का उत्सव मनाया। बैडमिंटन से लेकर वेटलिफ्टिंग तक, महिलाओं ने लगातार पदक और पुरस्कार जीते हैं। ओलंपिक में बैडमिंटन में हमारे सबसे बेहतरीन पदक महिला खिलाड़ियों ने ही जीते हैं। यह दर्शाता है कि बिना स्वर्ण पदक के भी महिलाएं विश्व स्तर पर अपनी क्षमता का लोहा मंववा रही हैं।
बदलाव की आवश्यकता
वाणी कपूर ने भविष्य में बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित किया और कहा कि वह अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल भारतीय खेलों के लिए एक मजबूत और समावेशी पारिस्थितिकी व्यवस्था बनाने के लिए करेंगी। उनका मानना है कि भारतीय खेलों के भविष्य को संवारने के लिए संरचनात्मक सुधार बेहद जरूरी हैं।
वाणी कपूर की यात्रा ने पारंपरिक रूप से पुरुषों के प्रभुत्व वाले खेल को तोड़ा है और उनके इस कदम से भारतीय खेलों की प्रणाली में बदलाव की जरूरत को उजागर किया है। यह बातचीत उन सभी एथलीटों के लिए प्रेरणा है, जो भारतीय खेलों में अपना योगदान देना चाहते हैं।