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Breast cancer एक बीमारी ही नहीं, महिलाओं के लिए सामाजिक, भावनात्मक और मानसिक बदलाव और चुनौती भी हैं।National Institute of Cancer Prevention and Research के अनुसार Breast cancer कैंसर का ऐसा रूप जो महिलाओं को हर रूप में बदल देता हैं। भारत में 28 में से एक महिला को अपने जीवन काल में एक बार Breast cancer से जंग लड़ने का खतरा होता हैं, साथ ही शहरों मे यह आंकड़ा 22 में से 1 और ग्रामीण महिलाओं में यह दर कम होकर 60 में से 1 हो जाती हैं। Breast cancer का खतरा महिलाओं में उनके 30s से लेकर 50-64 उम्र तक पहुचने तक बढ़ जाता हैं। लेकिन ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने कैंसर से जंग लड़ीं और सामाजिक रुढ़िवादी सोच को चुनौती दी हैं।
हौसले की नई परिभाषा: Breast Cancer से लड़ती महिलाओं की मानसिक ताकत
स्वीकृति का भाव (Self-Acceptance)
बीमारीं को स्वीकार करना सबसे बड़ी जंग का हिस्सा हैं, इसे स्वीकार करना खुद के लिए ताकत देने जैसा हैं। यह कुछ इस तरह हैं कि डर को परिभाषा देने पर डर, साहस में बदल जाता हैं। और यह उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता हैं, मन के पास ऐसी शक्ति हैं जो बीमारी को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकती हैं, और जब बीमारी को accept कर लिया जाता हैं, तो उसे चुनौती मिलती हैं, जिसे महिलाएं जीतती भी हैं।
आत्म-बल और संवाद (self-motivation and self-talk)
कई महिलाएं अपनी इस नई संघर्ष भरी यात्रा के दौरान खुद से जुडने का मौका पाती हैं। वे डायरी लिखना, मेडिटेशन करना, किताबे पढ़ना और खुद को अभिव्यक्त(Express) करना भी शुरू करती हैं, यह उन्हें खुद से जुडने और खुद को समझने का मौका देता हैं। वे अपनी कहानी को दूसरों को प्रेरणा की तरह देतीं हैं। उनकी कहानी सिर्फ उनकी नहीं महिलाओ की एक ऐसे लीडर की कहानी हैं, जो अकेला संघर्ष करता हैं, और जीतता भी हैं।
परिवार और समुदाय का सपोर्ट
अकेले यह जंग आसान नहीं होती, पर जब परिवार और कम्यूनिटी साथ दें तो जंग मुश्किल भी नहीं रहती हैं। महिलाएं सामाजिक ढांचे में ऐसे ढली होती हैं, कि मित्र, परिवार और सहकर्मी उनके लिए उनके साहस का परिचायक बन जाते हैं, उनका सपोर्ट उन्हें हौसला देता हैं। कम्यूनिटी उन्हें उनकी नई पहचान को समझने में मदद ही नहीं करती बल्कि उन्हे सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने में मदत भी करती हैं।
नई पहचान और नया अध्याय
जो महिलाएं इस जंग के बीच में होती हैं, या इससे diagnosis हुई हैं, उनके लिए यह ऐसा अध्याय हैं जो डराने वाला जरूर हैं, पर आपको साहस और उम्मींद की नई परिभाषा देता हैं। जिन महिलाओं ने भी इससे जंग लड़ीं है, वे जीवन का ऐसा अध्याय खेल कर आई हैं, जिसने उनसे नई पहचान जोड़ी हैं, जिसे वे साहस और नया जन्म की तरह भी देखती हैं।
कैंसर से परे एक नई पहचान
स्तन कैंसर से लड़ती महिलाएं "रोगी" से ऊपर एक माँ, बेटी, लेखिका, शिक्षिका, किसान और कलाकार भी होती हैं। उनकी पहचान बीमारी से कई आगे होती हैं। मानसिक ताकत उन्हें इस पहचान को बनाए रखने और पुनः गढ़ने में मदद करती हैं।
रीना: एक ऐसी महिला जो थी साधारण पर जज्बा असाधारण
रीना को 2018 में स्टेज 2 ब्रेस्ट कैंसर का पता चला। उन्होंने कई थेरपी कराई पर अपनी दिनचर्या नहीं छोड़ी। वे कहती हैं कि उन्होंने अपने इस संघर्ष के दौरान कभी अपनी दिनचर्या नहीं छोड़ी। वे मानसिक रूप से अपना पूरा ख्याल रखती और मजबूत बनी रही।
सोनाली बेंद्रे: एक अभिनेत्री और कैंसर जागरूकता की मिसाल
2018 में न्यूयॉर्क में शूटिंग के दौरान सोनाली को Metastatic breast cancer का पता चला। उन्होंने अपनी संघर्ष को सोशल मीडिया पर भी साँझ किया, उन्होंने बताया कि यह महिलाओं के लिए डर के आगे जीत का सफर हैं, इससे डर नहीं जांच करवाएं।
ऐसी कई भारतीय महिलाएं हैं जिन्होंने सिर्फ इससे जंग नहीं लड़ीं, बल्कि बताया कि हर जंग संभव हैं बस खुद पर आत्मविश्वास और हौसला हो। इलाज के दौरान अपना काम जारी रखना, उनके लिए सिर्फ एक जिम्मेदारी हैं, बल्कि उपचार का एक जरिया था- एक ऐसा माध्यम जिसने उन्हें पहले जैसा महसूस कराया और प्रेरणा बनने में मदद की। उनकी संघर्ष यात्रा एक ऐसी कहानी है जो यह बताती हैं, कि पहले खुद को स्वीकार करना कितना आवश्यक हैं, ब्रेस्ट कैंसर एक आसान जंग नहीं पर आप लड़ सकती हैं, और अपने आसपास की महिलाएं जो इससे जंग लड़ रही हैं उनका हौसला बने।