Tourette Syndrome Awareness: कैसे बॉलीवुड फिल्म Hichki ने टौरेट सिंड्रोम को समाज में जागरूकता का जरिया बनाया?

फिल्म Hichki ने टौरेट सिंड्रोम को एक नई पहचान दी, दिखाया कि कैसे आत्मविश्वास, स्वीकार्यता और सही हैल्थ देखभाल से हर चुनौती को पार किया जा सकता है। जानिए ।

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Sakshi Rai
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Photograph: (dnaindia)

How did the Bollywood film Hichki raise awareness about Tourette Syndrome: बॉलीवुड हमेशा से सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को जागरूकता के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक प्रभावी जरिया रहा है, और फिल्म Hichki इसका बेहतरीन उदाहरण है। रानी मुखर्जी द्वारा अभिनीत इस फिल्म में टौरेट सिंड्रोम नामक एक न्यूरोलॉजिकल विकार को दिखाया गया है, जिसमें व्यक्ति को अनियंत्रित रूप से आवाज़ें निकालने या झटके देने जैसी समस्याएँ होती हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं और अक्सर इसे मज़ाक या कमजोरी समझा जाता है। Hichki न सिर्फ एक शिक्षिका की प्रेरणादायक यात्रा को दिखाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि आत्मविश्वास, धैर्य और समाज की स्वीकृति से हर चुनौती को पार किया जा सकता है। इस फिल्म के माध्यम से टौरेट सिंड्रोम को लेकर लोगों की सोच बदलने और जागरूकता फैलाने का एक सफल प्रयास किया गया है।

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कैसे बॉलीवुड फिल्म Hichki ने टौरेट सिंड्रोम को समाज में जागरूकता का जरिया बनाया? 

हर परिवार में जब कोई समस्या आती है, तो सबसे पहले चिंता और डर पैदा होता है। परिवार वाले सोचते हैं कि इस समस्या का कोई हल नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे जब वे इसे स्वीकार करते हैं और सही समाधान ढूँढते हैं, तब चीज़ें आसान हो जाती हैं। कुछ ऐसा ही संदेश बॉलीवुड फिल्म Hichki देती है, जिसमें टौरेट सिंड्रोम जैसी एक दुर्लभ समस्या को दिखाया गया है, जिससे लोग अक्सर अनजान होते हैं।

फिल्म की कहानी नैना माथुर (रानी मुखर्जी) नाम की एक शिक्षिका के इर्द-गिर्द घूमती है, जो टौरेट सिंड्रोम से जूझ रही होती हैं। यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर होता है, जिसमें व्यक्ति बिना किसी नियंत्रण के अचानक आवाज़ें निकालने लगता है या झटके देने जैसी हरकतें करता है। इस स्थिति की वजह से नैना को बार-बार नौकरी के लिए रिजेक्शन मिलता है, क्योंकि लोग इसे एक कमजोरी मानते हैं। लेकिन वह हार नहीं मानती और आखिरकार एक स्कूल में टीचर बन जाती हैं, जहाँ उन्हें कमजोर समझे जाने वाले छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाती है।

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फिल्म हमें यह सिखाती है कि किसी भी समस्या या कमी को कमजोरी नहीं माना जाना चाहिए। जब नैना खुद अपने टौरेट सिंड्रोम को स्वीकार कर लेती हैं, तो वह इसे अपनी ताकत बना लेती हैं और अपने स्टूडेंट्स को भी यह सिखाती हैं कि किसी भी कठिनाई को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए। शुरुआत में उनके स्टूडेंट्स भी उनकी बीमारी का मजाक उड़ाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे उनकी मेहनत और संघर्ष को देखते हैं, वैसे-वैसे वे उन्हें स्वीकार करने लगते हैं।

Hichki समाज में जागरूकता फैलाने का बहुत अच्छा जरिया बनी, क्योंकि इस फिल्म ने टौरेट सिंड्रोम को एक गंभीर लेकिन सामान्य रूप में दिखाया, जिससे लोग इसे बेहतर समझ सकें। आमतौर पर इस तरह की मानसिक और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं को लेकर लोगों में कई गलतफहमियाँ होती हैं, लेकिन इस फिल्म ने यह दिखाया कि सही समझ, धैर्य और आत्मविश्वास से हर चुनौती को पार किया जा सकता है।

हर परिवार में, जब किसी सदस्य को कोई स्वास्थ्य समस्या होती है, तो पहले उसे लेकर असहाय महसूस किया जाता है, लेकिन जब परिवार सपोर्ट करता है, तो वही इंसान आगे बढ़कर अपनी कमजोरी को ताकत में बदल सकता है। Hichki यही संदेश देती है – चुनौतियों को गले लगाइए और अपनी कमियों को अपनी ताकत बनाइए!

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Disclaimer: इस प्लेटफॉर्म पर मौजूद जानकारी केवल आपकी जानकारी के लिए है। हमेशा चिकित्सा या स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने से पहले किसी एक्सपर्ट से सलाह लें।

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