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No Shame in Talking About Periods: भारत जैसे देश में जहां चांद-तारों से लेकर ब्रह्मांड की बातें खुलकर होती हैं, वहीं एक नेचुरल बॉडी प्रोसेस "Periods" अब भी फुसफुसा कर बोला जाता है। स्कूल में लड़कियों को सिखाया जाता है कि सेनेटरी पैड को किताब के अंदर छुपा कर ले जाओ, Medical Store वाला Pad काले पॉलिथीन में देता है और घर में ‘उन दिनों’ का नाम लेने से भी लोग कतराते हैं।
पीरियड्स से जुड़ी बातों पर शर्म क्यों नहीं करनी चाहिए?
पीरियड्स एक बीमारी नहीं, जीवन का संकेत हैं
पीरियड्स किसी भी लड़की के शरीर का हेल्दी फंक्शन हैं। यह माँ बनने की संभावना का प्रतीक है। फिर भी इसे गंदा, अशुद्ध और शर्मनाक क्यों कहा जाता है?
चुप्पी से बढ़ती है गलतफहमी
जब हम पीरियड्स की बात नहीं करते, तो बच्चियाँ डर और गलतफहमी में जीती हैं। उन्हें लगता है कि ये कोई सज़ा है, कोई बुरा अनुभव, जिससे अकेले ही गुज़रना है। खुलकर बात करने से वे समझती हैं कि ये एक Normal और नेचुरल चीज़ है।
चुप रहकर हम टैबू को मज़बूत करते हैं
जब भी कोई लड़की पीरियड्स की बात करते हुए चुप हो जाती है या खुद को छुपाती है, वो उस सामाजिक दबाव को और मज़बूत करती है, जो कहता है “ये बात गंदी है, इसे छुपाना चाहिए।”
तो अब वक्त है बोलने का, छुपाने का नहीं,मां-बेटी के बीच खुली बातचीत ज़रूरी है।स्कूलों में लड़कों को भी पीरियड्स की शिक्षा दी जानी चाहिए। पीरियड्स से जुड़ी भ्रांतियों को तोड़ना जरूरी है, जैसे ‘उन दिनों मंदिर न जाओ’, ‘अचार मत छुओ’ वगैरह। सेनेटरी पैड या मेंस्ट्रुअल कप को छुपाने की बजाय, खुले में रखना नॉर्मल होना चाहिए।
जिस चीज़ से जीवन की शुरुआत होती है, उससे शर्म कैसी? हमें ज़रूरत है एक ऐसे समाज की, जहां लड़की को उसके पीरियड्स पर फख्र हो, शर्म नहीं।
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