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एक महिला कहीं भूमिका निभाती हैं और जिम्मेदारी के चलते अपने भावनात्मक पक्ष को दबाती सी चली जाती हैं। मुस्कराहट के साथ अनकहा दर्द और उदासी उसे घेरी होती हैं।महिला भावनात्मक बोझ को महसूस तो करती हैं पर उसके लिए सहीं निर्णय और उपाय नहीं दें पाती, न उसके लिए जिम्मेदारियों से समय निकाल पाती हैं। जब महिला थकती हैं तो थकावट शारीरिक से ज्यादा आंतरिक होती हैं, थकान सिर्फ शारीरिक से ज्यादा भावनात्मक होती हैं। भावनात्मक बोझ को समझना आवश्यक हैं क्योंकि यह नारी के स्वास्थय, आत्मसम्मान, और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता हैं।
जब महिला थक जाती हैं: भावनात्मक बोझ को समझना कितना हैं आवश्यक?
भावनात्मक बोझ कैसे आता हैं?
भावनात्मक बोझ वह अदृश्य भार हैं जिसे महिलाएं हर रोज ढोती हैं, अक्सर बिना शिकायत और आराम के और यह अनकहा बोझ उन्हें अंदर से घोटता चला जाता हैं जिसका परिणाम अवसाद, खुद के प्रति हीनता जैसे भावों से ग्रसित कर देता हैं। दूसरों का ख्याल, रिश्तों को संभालना, खुद की भावनाओं को दबाना और हमेशा मजबूत बने रहना इन सबमें वे खुद को भूल जाती हैं और यही भावनात्मक बोझ बन जाता हैं।
1. स्वास्थ्य पर असर
लगातार तनाव से सिरदर्द, थकावट, नींद मे कमी और हार्मोनल अंसतुलन हो जाता हैं और लंबे समय तक इसका बना रहना मानसिक स्वास्थ्य के साथ साथ शारीरिक स्वास्थय पर भी असर डालता हैं।
2. रिश्तों में दूरी
जब महिला थक जाती हैं तो संवाद में कमी आ जाती हैं जिससे अकेलापन उसे घेरने लगता हैं। सबके होते हुए भी स्वयं को अकेला और असहाय महसूस करने लगती हैं।
3. आत्म संवेदना की कमी
महिलाएं अक्सर इसे नजरंदाज करती हैं और स्वयं को दोषी मानने लगती हैं और खुद के प्रति सख्ती से पेश आती हैं जो उन्हें और तोड़ता हैं, बाहर से मजबूती आती है लेकिन अंदर से खोखलापन जो उनके लिए अच्छा नहीं।
4. आत्मनिर्भरता की कमी
जब महिला थक जाती हैं तो वह निर्णय लेने से कतराती हैं, और अपनी आवाज को दबाती जाती हैं। महिलाएं खुद को कमजोर समझने लगती हैं यह उन्हें कमजोर और असहाय महसूस कराता हैं। आवश्यक हैं इसे समझना और खुद के लिए कदम उठाना भावनात्मक स्पेस और सहयोगी संवाद (उन्हें सुनना) एक अच्छा और सही विक्लप हैं उन्हे मजबूती के साथ-साथ भावनात्मक बोझ को समझने का।