Asthama: किशोरावस्था के बाद महिलाओं में क्यों रहती है अस्थमा होने की ज्यादा संभावना और कैसे करें बचाव

किशोरावस्था के बाद महिलाओं में अस्थमा का जोखिम बढ़ता है जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। इन कारकों को सही कदम और सावधानियां अपनाकर आप अस्थमा के प्रभाव को कम कर सकती हैं और एक स्वस्थ जीवन जी सकती हैं।

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Kirti Sirohi
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Asthama

Image: (Freepik)

Why Are Women More Likely To Have Asthma After Adolescent And How To Prevent It: अस्थमा एक आम लेकिन दीर्घकालिक श्वास संबंधी बीमारी है जो महिलाओं और पुरुषों में से किसी को भी हो सकती है। लेकिन क्या आप जानती हैं कि जहां अस्थमा के होने की ज्यादा संभावना पुरुषों में होती है, वहीं महिलाओं में किशोरावस्था आने के बाद इस बीमारी के होने की संभावना पुरुषों के मुक़ाबले ज्यादा बढ़ जाती है। यूनाइटेड किंगडम की अस्थमा एंड लंग ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार 20 से 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं में पुरुषों के मुक़ाबले अस्थमा होने के चांस 3% ज्यादा बढ़ जाते हैं। इसके पीछे महिलाओं में किशोरावस्था के बाद होने वाले कई कारण होते हैं।

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महिलाओं में अस्थमा के कारण

एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन

किशोरावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर सेक्स हार्मोन खासकर के एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ने लगता है और ये हार्मोन उनकी श्वसन प्रणाली पर प्रभाव डाल सकते हैं। एस्ट्रोजन का उच्च स्तर एयरवे यानी वायुमार्ग में सूजन को बढ़ा देता है जिससे अस्थमा के लक्षण ज्यादा गंभीर हो सकते हैं। इसके अलावा महिलाओं में उनके पीरियड साइकिल, गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज के दौरान हार्मोनल उतार-चढ़ाव अस्थमा के लक्षणों को प्रभावित कर सकते हैं। 

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पीरियड साइकिल और प्रेग्नेंसी

महिलाओं की पीरियड साइकिल यानी मासिक धर्म चक्र के दौरान उनके हार्मोंस में कई तरह के उतार-चढ़ाव होते हैं जो अस्थमा के लक्षणों को प्रभावित कर देते हैं। इसलिए ही जिन महिलाओं को पहले से अस्थमा की दिक्कत है वो मासिक धर्म के दौरान अस्थमा के लक्षणों में वृद्धि का अनुभव भी करती हैं। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान भी महिलाओं में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन अस्थमा के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं।

मेनोपॉज और हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (HRT)

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महिलाओं में मेनोपॉज के दौरान एस्ट्रोजन के स्तर में अचाचांक गिरावट आती है जिससे कुछ महिलाओं में अस्थमा के लक्षण बढ़ जाने की संभावना रहती है। साथ हो जो महिलाएं हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (HRT) कराती हैं, उनमें भी अस्थमा के जोखिम को प्रभावित कर सकता है।

मोटापा

मोटापा और अस्थमा के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध होता है क्योंकि मोटापा हमारे श्वसन तंत्र पर अधिक भार डाल देता है, जिससे अस्थमा के लक्षण बढ़ सकते हैं। महिलाओं में पीरियड्स, प्रेग्नेंसी या मेनोपॉज के दौरान बढ़ने का खतरा रहता है और इसी वजह से उनमें अस्थमा होने का जोखिम भी 20 से 50 वर्ष की आयु के बीच बढ़ जाता है या अगर किसी महिला को अस्थमा है तो उनको यह ज्यादा प्रभावित करता है।

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एंड्रोजन हार्मोन की कमी

महिलाओं के अंदर एंड्रोजन नामक पुरुष हार्मोन पाए जाते हैं जो टाइप 2 सूजन को कम करते हैं और अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। लेकिन अगर महिलाओं में एंड्रोजन का स्तर कम हो जाए तो इससे सूजन बढ़ सकती है और अस्थमा के लक्षण बनने या बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है।

स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं

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अगर महिलाएं अपनी जीवनशैली को बेहतर बनाएं और नियमित रूप से व्यायाम करें, संतुलित आहार का सेवन करें, और वजन को नियंत्रित बनाए रखने पर ध्यान दें तो अस्थमा के जोखिम को कम किया जा सकता है। 

पीरियड्स में दर्दनिवारक दवाओं का इस्तेमाल

कई महिलाओं को पीरियड्स के समय असहनीय दर्द होता है और इस दर्द में वो पेन किलर लेती हैं लेकिन इन पेन किलर में कुछ दवाएं महिलाओं में अस्थमा के लक्षण विकसित करने और गर आपको अस्थमा है तो उसे ज्यादा बदतर बनाने का काम करती हैं। इसलिए पीरियड्स के दौरान बिना डॉक्टर की सलाह के दर्दनिवारक दवाओं और खासकर के नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी टैबलेट (NSAIDs) का सेवन करने से महिलाओं को बचना चाहिए।

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प्रदूषण और एलर्जेन्स से बचाव

अस्थमा में एलर्जी और प्रदूषण भी अहम भूमिका निभाता है। यह अस्थमा के लक्षणों को गंभीर कर सकता है इसलिए महिलाओं को धूल, धुआं, गंदगी या ऐसे पालतू जानवरों, जिनसे एलर्जी होने की संभावना हो, से बचना आवश्यक है। इसके साथ ही घर को साफ और स्वच्छ रखें, नियमित रूप से बेडशीट और चादरों को धोएं और अगर आसपास हवा की गुणवत्ता खराब है तो एयर प्यूरीफायर का उपयोग जरूर करें। यह अस्थमा में सहायक हो सकता है।

टीकाकरण

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बार बार गंभीर बीमारियों का होना भी अस्थमा के लक्षणों को बदतर बना देता है। इसलिए फ्लू और निमोनिया जैसी बीमारियों के लिए पहले ही टीकाकरण जरूर करवाएं क्योंकि यह भी अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित रखने में सहायक हो सकता है।

हार्मोनल परिवर्तनों की निगरानी रखें

महिलाओं को पीरियड साइकिल को ट्रैक करना जरूरी होता है और साथ ही गर्भावस्था और मेनोपॉज के दौरान आपको अस्थमा के लक्षणों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आप इसके लिए चिकित्सक से सलाह लेकर टेस्ट भी करवा सकती हैं क्योंकि अगर हार्मोन में ज्यादा उतार-चढ़ाव होते हैं तो अस्थमा के लक्षण बनने की संभावना रहती है।

Disclaimer: इस प्लेटफॉर्म पर मौजूद जानकारी केवल आपकी जानकारी के लिए है। हमेशा चिकित्सा या स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने से पहले किसी एक्सपर्ट से सलाह लें।

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