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Why is womens mental health so ignored in society: एक औरत के जीवन में कई किरदार होते हैं बेटी, बहन, पत्नी, मां, कर्मचारी, गृहिणी। हर दिन वो समाज की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करती है, पर उसकी अपनी भावनाएं, उसकी थकान, उसका मानसिक बोझ अकसर अनदेखा रह जाता है। Mental Health के बारे में बात करते हुए हम अक्सर इसे शारीरिक बीमारी से कमतर समझते हैं, और जब बात महिलाओं की हो, तो हालात और भी गंभीर हो जाते हैं। महिलाएं खुद को आखिरी पायदान पर रखती हैं, और समाज भी उनकी मानसिक स्थिति को अहमियत देने से कतराता है।
महिलाओं की मेंटल हेल्थ समाज में इतनी नजरअंदाज क्यों?
औरत तो सहनशील होती है
हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को सिखाया जाता है कि रोना कमज़ोरी नहीं, मजबूरी है और सहना उनकी शक्ति है। औरतें तो मजबूत होती हैं”, तुम तो मां हो, इतनी छोटी सी बात के लिए क्यों परेशान हो? जैसे वाक्य उनकी भावनात्मक पीड़ा को नजरअंदाज कर देते हैं। यही वजह है कि डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी, postpartum depression जैसी समस्याएं महिलाओं में आम होते हुए भी समझी नहीं जातीं। उन्हें बस मूड स्विंग या ‘हार्मोनल इशू’ कहकर टाल दिया जाता है।
बदलते समय में बढ़ता दबाव
आधुनिक महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह अपनी ज़िम्मेदारियां निभा रही हैं। वर्किंग वुमन को एक तरफ ऑफिस की डेडलाइन्स से जूझना पड़ता है, तो दूसरी तरफ घर के काम, बच्चों की परवरिश और समाज के तानों से। वहीं, गृहिणियों की भावनाएं अक्सर यह कहकर दबा दी जाती हैं कि तुम्हें करना ही क्या है, सारा दिन घर पर ही तो रहती हो। इस अनदेखी ने महिलाओं को अंदर से तोड़ना शुरू कर दिया है। वे अकेलेपन, आत्मग्लानि और थकावट से जूझती हैं, पर कह नहीं पातीं।
मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता क्यों बनाना चाहिए?
जब तक महिलाओं की मानसिक स्थिति को लेकर जागरूकता नहीं बढ़ेगी, तब तक हम एक संपूर्ण, स्वस्थ समाज की कल्पना नहीं कर सकते। मेंटल हेल्थ का मतलब सिर्फ बीमारी नहीं है यह आत्म-सम्मान, आत्म-जागरूकता और आंतरिक शांति से भी जुड़ा है। महिलाओं को एक ऐसा स्पेस देना ज़रूरी है जहां वे अपनी बात कह सकें, सुनी जा सकें, और प्रोफेशनल मदद लेने में शर्म महसूस न करें। मेंटल हेल्थ के लिए समय निकालना खुद से प्यार करने का तरीका है, और यह हर औरत का हक़ है।
महिलाओं की मानसिक सेहत को नजरअंदाज करना उन्हें धीरे-धीरे अंदर से खोखला कर देता है। अगर हम सच में महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो हमें उनके मानसिक स्वास्थ्य को उतनी ही प्राथमिकता देनी होगी जितनी शारीरिक स्वास्थ्य को देते हैं। सवाल सिर्फ यह नहीं है कि औरत क्यों टूट जाती है?, सवाल यह है कि “हम कब समझेंगे कि वह भी थक सकती है, टूट सकती है और उसे भी सहारा चाहिए।