National Suicide Prevention Month: क्यों महिलाएं आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर हो जाती हैं?

सुसाइड या आत्महत्या एक ऐसा कदम है जो व्यक्ति तब उठाता है जब उसे लगता है कि उसके पास अब कोई दूसरा रास्ता नहीं है। भारत जैसे देश में युवतियों और महिलाओं के आत्महत्या करने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

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Rajveer Kaur
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सुसाइड या आत्महत्या एक ऐसा कदम है जो व्यक्ति तब उठाता है जब उसे लगता है कि उसके पास अब कोई दूसरा रास्ता नहीं है। भारत जैसे देश में युवतियों और महिलाओं के आत्महत्या करने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें से सबसे अधिक हाउसवाइफ़ होती हैं क्योंकि शादी और परिवार का तनाव उनके जीवन में बहुत बड़ा दबाव बन जाता है। एक महिला को प्रेगनेंसी, मन का संतुलन और मज़बूत सोशल सपोर्ट ग्रुप सुसाइड से बचा सकते हैं, लेकिन डिप्रेशन, घरेलू हिंसा और सामाजिक दबाव उन्हें इस दलदल में धकेल देते हैं। यही कारण है कि महिलाएं कई बार खुद को जीवन से हार मानने पर मजबूर महसूस करती हैं।

क्यों महिलाएं आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर हो जाती हैं?

घरेलू हिंसा और टॉक्सिक रिश्ते

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महिलाओं में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्हें घर पर शांति नहीं मिलती। उनके साथ मारपीट, गाली-गलौज और सेक्सुअल हैरेसमेंट जैसी घटनाएं होती हैं। वे अक्सर ऐसी शादियों में फंसी होती हैं जो पूरी तरह से टॉक्सिक होती हैं। उन्हें वहां सम्मान नहीं मिलता, न ही उनकी कोई वैल्यू होती है। लेकिन समाज की इज़्ज़त बचाने के लिए उन्हें ऐसे रिश्तों में रहना पड़ता है। दहेज, पार्टनर का शक और कंट्रोलिंग व्यवहार महिलाओं को और भी गहरे तनाव में धकेल देता है और उनका मानसिक संतुलन पूरी तरह से टूट जाता है।

समाज का ताना-बाना

हमारा समाज भी इस समस्या की जड़ में है। यहां घर की इज़्ज़त का बोझ महिलाओं पर डाल दिया जाता है। कई बार महिलाओं की गलती न होने के बावजूद उन्हें दोषी ठहराया जाता है। अगर किसी महिला के साथ रेप हो जाए, तो समाज उसकी ही गलती बताता है—कपड़ों, वक्त और दोस्तों के आधार पर उसे जज किया जाता है। अगर कोई महिला बच्चा पैदा नहीं कर पाती, तो उसे शर्मिंदा किया जाता है। अगर वह विधवा हो जाए, तो भी समाज उसे जीने नहीं देता। अगर उसने डाइवोर्स लिया है, तो उसके चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं। इन सब परिस्थितियों में परिवार भी बेटियों को ज़बरदस्ती टॉक्सिक शादी में रहने के लिए दबाव डालता है, जिससे वे अंदर ही अंदर टूटने लगती हैं।

हर कदम पर जजमेंट

महिला को लगभग हर कदम पर जज किया जाता है। उनके पीरियड्स पर खुलकर बात करने से लेकर मानसिक स्वास्थ्य पर राय रखने तक, नौकरी करने और खुलकर जीने तक, अपनी पसंद के कपड़े पहनने और किसी के सामने झुकने से इनकार करने तक—हर जगह उन्हें आलोचना झेलनी पड़ती है। यह लगातार होने वाला जजमेंट उनकी मानसिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित करता है। कई महिलाएं इस डर से अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ तक नहीं उठा पातीं और अंदर ही अंदर घुटकर जीती रहती हैं।

आर्थिक शोषण और निर्भरता

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महिलाओं को आर्थिक शोषण भी झेलना पड़ता है। कई बार उन्हें नौकरी करने की अनुमति नहीं दी जाती, पढ़ाई-लिखाई से वंचित रखा जाता है और हर पैसे के लिए पति, भाई या पिता पर निर्भर होना पड़ता है। वर्कप्लेस पर भी उन्हें हरासमेंट और दबाव का सामना करना पड़ता है और पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है। यह असमानता उनकी आत्मनिर्भरता छीन लेती है और उन्हें यह एहसास कराती है कि उनकी ज़िंदगी किसी और के हाथों में कंट्रोल हो रही है।

मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी

सबसे बड़ी अनदेखी महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर की जाती है। उन्हें डिप्रेशन, एंज़ायटी और ट्रॉमा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन इस पर खुलकर बात नहीं होती। एक महिला सबसे अधिक डिप्रेशन के जोखिम में तब होती है जब वह बच्चे को जन्म देती है। इस समय उसे भावनात्मक सहारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, लेकिन परिवार का ध्यान केवल बच्चे पर केंद्रित हो जाता है। मां की मानसिक ज़रूरतें अक्सर अनदेखी रह जाती हैं। इसी वजह से कई बार महिलाएं गहरे डिप्रेशन में चली जाती हैं और उन्हें लगता है कि वे अदृश्य हो गई हैं और किसी के लिए उनकी कोई अहमियत नहीं है।