Being Housewife - Choice or Compulsion? : हाउसवाइफ बनना किसी की मजबूरी भी हो सकती और पसंद भी लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि हाउसवाइफ महिलाएं मॉडर्न नहीं होतीं या फिर वो दबी कुचली हुई हैं। यह हाउसवाइफ के लिए सबसे बड़ी मिथ है। यह बहुत ही कॉम्प्लेक्स इश्यू है जिसको हमें समझने और विचारने की जरूरत है।
हाउसवाइफ होना एक चॉइस है या मज़बूरी?
चॉइस है सबसे बड़ा पहलू
इस बात को समझने के लिए हमें सबसे पहले चॉइस को समझना होगा। यह बहुत छोटी और जरूरी बात है कि जिसे हम अक्सर ही इग्नोर कर देते हैं। उदहारण के तौर पर अगर हम बात करें कोई महिला पढ़ी-लिखी है। शादी से पहले वह जॉब करती थी लेकिन शादी के बाद उसने हाउसवाइफ बनने का फैसला ले लिया। इस केस में महिला की अपनी पसंद है इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
असलियत कुछ और ही है
असलियत को देखा जाए तो बहुत कम ऐसी महिलाएं हैं जो चॉइस के साथ हाउसवाइफ हैं। ज्यादातर महिलाओं के घर के हालात और जिम्मेदारियां ऐसी होती हैं कि उन्हें हाउसवाइफ बनने का फैसला लेना पड़ता है। हमारे घरों में भी हमारी मदर्स ने अपना करियर सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उन्हें कभी फैमिली का साथ नहीं मिला और ना ही उनकी चॉइस के बारे में किसी ने जानना चाहा।
वर्किंग वुमन की जिंदगी भी नहीं आसान
वर्किंग वुमन की जिंदगी भी इतनी आसान नहीं है जितना हम सोच लेते हैं। उनके ऊपर ज्यादा बोझ होता है। उन्हें घर और ऑफिस दोनों जगह संभालना पड़ता है। एक ही कंडीशन पर उन्हें जॉब करने की पर्मिशन मिलती है कि 'घर तो तुम्हें संभालना है यही तुम्हारी फर्स्ट प्रायरटी होना चाहिए। ऑफिस साथ में कैसे मैनेज करना है यह तुम्हारी प्रॉब्लम है।'
दोनों ही रिस्पेक्ट के हकदार
औरत वर्किंग हो या होम मेकर, दोनों को बराबर रिस्पेक्ट मिलनी चाहिए। जब हम हाउसवाइफ शब्द के बारे में सोचते हैं तो हमारे सामने ऐसी महिला की तस्वीर आती है जो बहुत डरी और सहमी हुई है। इसका कारण हाउसवाइफ की इमेज के ऐसे पेश किया जाना है।
दूसरी तरफ वर्किंग वुमन को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर रिप्रेजेंट किया जाता है। उनके बारे में बातें बनाई जाती हैं कि घर की जिम्मेदारियां संभालनी ना पड़े इसलिए जॉब कर रही हैं। जब पति कमा रहा है तो कमाने की क्या जरूरत। हाउसवाइफ है या वर्किंग अगर दोनों ही अपनी मर्जी से इस रोल को चुन रही हैं तो दोनों औरतें ही सशक्त हैं। उन्हें पता है कि उन्हें लाइफ में क्या करना है।