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बच्चों को इमोशनल चीज़ों से डील करना कोई सीखा कर नहीं भेजता। पैदा होते ही वो एक भाषा बोलते हैं और वो है रोना या ना रोना। हसना, खुश होना, खेलना कूदना, यह सब उन्हें बड़े होते होते सिखाया जाता है, और भी कईं इमोशंस उसके साथ जुड़कर आते हैं।
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