हमारे समाज में माँ-बाप अपने बच्चों को शुरू से ही अपनी सोच मुताबिक जीने का ढंग सिखाते हैं और यही सोचते हैं कि जिस तरह उन्होंने अपनी ज़िंदगी गुज़ारी है, उसी तरह उनके बच्चे भी अपनी ज़िंदगी जिएं।
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