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Married Life: क्या माँ-बाप को शादी-शुदा बच्चों की लाइफ में दखल देना चाहिए?

हमारे समाज में माँ-बाप अपने बच्चों को शुरू से ही अपनी सोच मुताबिक जीने का ढंग सिखाते हैं और यही सोचते हैं कि जिस तरह उन्होंने अपनी ज़िंदगी गुज़ारी है, उसी तरह उनके बच्चे भी अपनी ज़िंदगी जिएं।

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Mandie Panesar
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Parents Should Not Interfere In Married Children's Life. (Image Credit: Pinterest)

Parents Should Not Interfere In Married Children's Life: हमारे समाज में माँ-बाप अपने बच्चों को शुरू से ही अपनी सोच के मुताबिक जीने का ढंग सिखाते हैं और यही सोचते हैं कि जिस तरह उन्होंने अपनी ज़िंदगी गुज़ारी है, उसी तरह उनके बच्चे भी अपनी ज़िंदगी जिएं। यह सोच इतनी प्रबल होती है कि बच्चों की शादी के बाद भी पेरेंट्स उनके जीने के अंदाज़ और सोच को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करते रहते हैं। पेरेंट्स यह भूल जाते हैं कि उनके बच्चे बड़े हो चुके हैं और उन्हें अपनी ज़िंदगी में अच्छे-बुरे की पूरी समझ है और रोक-टोक करने की वजह से बच्चों से दूर हो जाते हैं। 

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क्या माँ-बाप को शादी-शुदा बच्चों की लाइफ में दखल देना चाहिए?

भारतीय संस्कृति में माँ-बाप की अहम वैल्यू है, लेकिन जब वही माँ-बाप अपने बेटे या बेटी की शादी के बाद उनकी ज़िंदगी में दखल देने लगें तो रिश्ते बिगड़ते-बिगड़ते टूटने तक आ जाते हैं। बच्चे समझ नहीं पाते कि अब क्या डिसीजन लिया जाए। ऐसे में बच्चे या तो माँ-बाप से दूर हो जाते हैं और या उनका निजी रिश्ता खराब हो जाता है और बात तलाक तक पहुँच जाती है। 

कई सारे पेरेंट्स ऐसे होते हैं जो अपने बहू-बेटे और बेटी-दामाद की छोटी-मोटी नोक-झोंक से लेकर बड़े मुद्दे तक में दखलअंदाज़ी करने का हक़ समझते हैं। चाहे बच्चे उनके साथ न भी रहें, फिर भी उन्हें फ़ोन पर बच्चों की रोज़ की डिटेल और हर बात का एनालिसिस करना होता है। उन्हें समझना चाहिए कि बच्चे अब बड़े हो चुके हैं और उनकी अपनी एक लाइफ है। फिर वो लड़का हो या लड़की, उन्हें बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात में नहीं बोलना चाहिए। जब बच्चे साथ हों या फ़ोन पर बात हो तो उनके साथ अच्छी-अच्छी बातें करें, अगर आपस की बात आपको बतानी होगी तो वे खुद बता देंगे।  

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कई बार पेरेंट्स बहू के नौकरी करने से या कुछ भी काम करने से बे-वजह परेशान होते रहते हैं, वहीँ दूसरी ओर लड़की के पेरेंट्स अपने दामाद के फैसलों में किसी न किसी तरीके से इंटरफेर करने का बहाना ढूंढते रहते हैं। ऐसे पेरेंट्स को अपने बच्चों की डिसीजन मेकिंग पावर पर सवाल उठाने की जगह उनका साथ देना चाहिए और उनके रीज़नस को समझने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आपके दोनों बच्चे अपने म्यूच्यूअल डिसीजन्स से खुश हैं तो आपको इसमें दखल नहीं देना चाहिए। इससे आपकी अपने बच्चों के साथ दूरियां बढ़ सकती हैं। 

यह सच है कि पेरेंट्स होने के नाते आपका अपने बच्चों का अच्छा-भला सोचने का पूरा हक़ है, लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाएँ तो आपको उनके मामले में दखल नहीं देना चाहिए। जब बच्चे आपसे कोई सलाह मांगें या कुछ डिस्कस करें तब उन्हें डांटने या जज करने की जगह उन्हें प्यार और शांति से समझाएं और सलाह दें। अपने विचार या फैसले उन थोपने की कोशिश कभी न करें। 

अगर पेरेंट्स अपने बच्चों की हर बात, डिसीजन और ओपिनियन में आनाकानी करेंगे तो बच्चे धीरे-धीरे आपसे दूर होते जायेंगे और आपको एहसास भी नहीं होगा। इससे आपके रिश्तों में दरार आ सकती है। अगर बच्चे आपसे दूर न हो पाए तो हो सकता है कि वे फ़्रस्ट्रेशन में कोई ऐसा फैसला ले लें, जो आगे चल कर सबके लिए गलत साबित हो।

शादी-शुदा बच्चों Married Children's Life
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