भले ही हम कितना ही रट लें और सार्वजनिक दीवारों को 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' के नारों से रंग दे लेकिन दिमागों में बेटे की चाह वाले विचारों को निकाल पाना काफी मुश्किल है। हर कीमत चुकाने को तैयार बैठे है बेटे की चाह में भले इसके लिए कितनी बेटियों की जान क्यों ना लेनी पड़े।
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