कन्यादान एक ऐसा कोमोडीफिकेशन है जिसे खुशी-खुशी स्वीकार लिया जाता है। स्त्री खुद समाज के इस दोगलेपन को समझ नहीं पाती इसीलिए सड़क चलते कोई "माल" बोलदे तो तुरंत भड़क उठती है परंतु जब पूरे समाज के सामने उसके इंसानी रूप को अस्वीकार करके उसे सामान बनाया जाता है, तब कुछ नहीं कहती।
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