Advertisment

97 साल की महिला की दिल छूने वाली विभाजन की कहानी, 20 साल की उम्र में छोड़ा अपना घर

आज हम आपके साथ एक महिला की ऐसी ही घटना सांझी करने वाले हैं जो पाकिस्तान से पंजाब 20 साल की उम्र में पहुंचती हैं और अपना सब कुछ वहीं पर छोड़ देती हैं-

author-image
Rajveer Kaur
एडिट
New Update
Harbhajan Kaur

A 97-Year-Old's Story of Partition, Displacement, and New Beginnings: 1947 भारत के इतिहास का एक ऐसा वर्ष है जिसे हम सब आजादी के लिए याद करते हैं। हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि हमारा देश 1947 को आजाद हुआ था लेकिन इस दिन एक और घटना हुई थी। हमारा देश दो हिस्सों में बंट गया था। एक हिस्सा भारत और दूसरा हिस्सा पाकिस्तान बना। इस दौरान बहुत सारे लोगों को घर छोड़कर भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत पलायन करना पड़ा। यह सिर्फ जगह की अदला बदली ही नहीं थी बल्कि लोग अपने परिवार से दूर हो गए, देश में बड़े स्तर पर क़त्ल-ओ-ग़ारत हुई और महिलाओं के साथ रेप हुआ। हम आपके साथ एक महिला की ऐसी ही घटना सांझी करने वाले हैं जो पाकिस्तान से पंजाब 20 साल की उम्र में पहुंचती हैं और अपना सब कुछ वहीं पर छोड़ देती हैं-

Advertisment

97 साल की महिला की दिल छूने वाली विभाजन की कहानी, 20 साल की उम्र में छोड़ा अपना घर

यह कहानी पंजाब की हरभजन कौर की है जो पंजाब के गांव बिनपालके की रहने वाली हैं। उनका जन्म पाकिस्तान में होता है। उनकी सहेलियों पाकिस्तान की हैं जिनके साथ उन्होंने अपना बचपन गुजारा। उनका कहना है कि जब हम पाकिस्तान से भारत आए तब हम अपना सब कुछ पीछे छोड़ आए जो कि बिल्कुल आसान नहीं था। आज भी उनका मन पाकिस्तान में ही है। उन्हें भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद कभी भी पाकिस्तान वापिस जाने का मौका नहीं मिला। यह घटना उनके जीवन के सबसे कठिन घटनाओं में से एक है।

हरभजन कौर का पहला नाम स्वर्ण कौर था लेकिन उन्होंने शादी के बाद अपना नाम इसलिए बदल दिया क्योंकि उनके ससुर का नाम यही था। उनकी माता का नाम बसंत कौर और पिता का नाम गंडा सिंह था। उनकी तीन बहनें और दो भाई हैं। पहले समय में अगर ससुर या सास का नाम से बहु का नाम मिलता था तो शादी के बाद बहु का नाम बदल दिया जाता था। इसी तरह हरभजन कौर का नाम भी हरभजन कौर रख दिया गया। उनकी उम्र 97 साल है और 20 साल की उम्र में वह पाकिस्तान आई थीं। विभाजन का यह मंजर उन्होंने आंखों से देखा।

Advertisment

बचपन की यादें 

वह बताती हैं कि बचपन में पाकिस्तान में बगीचों में संतरे खाया करती थी। उनकी यह याद आज भी ताजा है। उन्हें वह सब कुछ याद आता है जो पल उन्होंने पाकिस्तान में बिताए थे। उन्होंने बताया कि उन्हें कुछ महीने पहले ही अंदाजा हो गया था कि अब हमारा देश दो हिस्सों में बंटने वाला है क्योंकि वहां के राजा फरीदकोट ने इसके बारे में उन्हें सूचना दे दी थी। उनके गांव में ज्यादा मुसलमान नहीं थे जिस कारण उनका गांव क़त्ल-ओ-ग़ारत का हिस्सा नहीं बना लेकिन जहां पर सिक्ख, हिंदू और मुस्लिम की आबादी ज्यादा थी वहां पर दंगे फसाद हुए। लोगों के घर उजड़ गए।

बैलगाड़ियों और पैदल यात्रा से पहुंचे भारत

Advertisment

दोनों मुल्कों में हफड़ा-दफड़ी मची हुई थी। लोगों का अपनों से साथ छूट रहा था। इस दौरान उन्होंने एक महीने की यात्रा की। ऐसे में उन्होंने सिर्फ जरूरी सामान ही अपने साथ उठाया। यह यात्रा कठिन थी। इस दौरान उन्होंने बहुत मुश्किलों का सामना किया जैसे पूरे 1 महीने तक कपड़े नहीं बदले। गर्मियों का मौसम था जिस वजह से चलना बहुत मुश्किल हो जाता था और खाने पीने के लिए भी ज्यादा  कुछ नहीं था। रात को भी कोई सोने का पक्का ठिकाना नहीं होता था। उन्हें जहां भी सुरक्षित महसूस होता था वहां पर ही वह रुक जाते थे। इस दौरान उनके पास खाने के लिए भी ज्यादा चीजें नहीं थी। उनके पास उतना ही समान था जितना वे अपने साथ उठा सकते थे। उनका यह काफिला बहुत बड़ा था जिसमें आसपास के 70 गांव भी शामिल थे। कुछ लोग बैलगाड़ियों पर सफर कर रहे थे लेकिन बहुत सारे लोग पैदल ही आ रहे थे। इस गर्मी में बच्चे भी साथ थे और प्रेग्नेंट महिलाएं भी।

उन्होंने एक घटना साझा करते हुए बताया कि एक महिला ने ऐसे ही इस यात्रा में बच्चों को जन्म दिया। उसके अचानक ही लेबर पेन शुरू होनी हो गई। रास्ते में रुककर महिला की डिलीवरी करवाई गई और उसके तुरंत बाद ही उस महिला के समेत काफिला फिर से चलना शुरू हो गया। उसके लिए कोई सुविधा नहीं थी।

सभी के लिए सफर इतना आसान नहीं था 

Advertisment

उन्होंने बताया कि हमारा काफिला बहुत सुरक्षित तरीके से भारत पहुंच गया लेकिन सभी के लिए यह इतना आसान नहीं था। बहुत सारे लोग इस दौरान भारत से पाकिस्तान या फिर पाकिस्तान से भारत पहुंच ही नहीं पाए क्योंकि उनका कत्ल हो गया। इस दौरान बहुत सारी महिलाओं को शारीरिक शोषण का भी सामना करना पड़ा। महिलाओं की लाशें भी रेप जैसे दुष्कर्म से नहीं बच पाई। इस पूरे समय के दौरान लोगों का हाल बेहाल था और उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

भारत में उनका परिवार पंजाब पहुंचा 

उनका परिवार भारत में बुलहोवाल, जिला होशियारपुर में पहुंचा। ऐसे में उन्होंने देखा कि पूरी जगह खाली पड़ी हुई है और कुछ ही लोग वहां पर मौजूद हैं। जैसे वह पाकिस्तान में अपना खाली घर छोड़कर आए थे वैसे ही यहां से लोग सब कुछ छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे।  उन्हें बहुत ज्यादा भूख लगी हुई थी तो ऐसे में बहुत सारी दुकाने खाली पड़ी हुई थी जहां से उन्होंने खाने के लिए सामान लिया।

Advertisment

विभाजन का दर्द

हरभजन कौर बताती हैं कि आज भी विभाजन का दर्द उनके मन में हैं। वह जब से भारत आई हैं, उन्हें कभी भी अपने गांव पाकिस्तान में जाने का आज तक मौका नहीं मिला। उन्हें आज भी अपना पुराना घर याद आता है जहां पर उन्होंने अपना बचपन बताया था। उनकी पाकिस्तान में 60 किल्ला के आसपास जमीन थी। उनका कहना है कि 20 साल की उम्र कम नहीं थी जब हमें अचानक ही अपना घर छोड़कर आना पड़ा। हम अपनी जमीन भी वहीं पर छोड़ आए। इसके साथ ही हमारा घर पूरा भरा हुआ था। उनके कपड़ों में जेब लगी हुई थी तो उनकी मां कुछ गहने उनकी जेब में डाल देती है ताकि यह सुरक्षित रह सके। उसे छोड़कर आना बिल्कुल भी आसान नहीं था। ऐसे बहुत सारे परिवार थे जो वहीं पर सब कुछ छोड़कर आ गए।

freedom fighter india Freedom Republic Day Partition
Advertisment