Advertisment

Saalumarada Thimmakka: भारत की 'ट्री वुमन' और 8000 पेड़ों की मां

जानें सालूमरादा थिम्मक्का के प्रेरणादायक जीवन के बारे में, जिन्होंने 8000 पेड़ लगाकर पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान दिया। उन्हें 2019 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

author-image
Vaishali Garg
New Update
Saalumarada Thimmakka: भारत की 'ट्री वुमन' और 8000 पेड़ों की मां

प्रकृति से जुड़ना कभी गलत नहीं हो सकता, और इसी दर्शन और जुनून के साथ सालूमरादा थिम्मक्का, जिन्हें 8000 पेड़ों की मां कहा जाता है, जीवन जीती हैं। आइए जानें इस महान पर्यावरण संरक्षक के बारे में।

Advertisment

Saalumarada Thimmakka: भारत की 'ट्री वुमन' और 8000 पेड़ों की मां

थिम्मक्का को 2019 में माननीय राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। उनका जीवन प्रेरणादायक है और यह दर्शाता है कि कैसे एक साधारण महिला ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया है।

Advertisment

थिम्मक्का का प्रारंभिक जीवन

थिम्मक्का का जन्म कर्नाटक के तुमकुर जिले के गुब्बी तालुक में हुआ था। वे एक साधारण स्कूल जाने वाली लड़की थीं, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। उनका परिवार उतना संपन्न नहीं था और स्कूल की फीस बचाने के लिए उन्हें खेती में हाथ बंटाने के लिए मजबूर किया गया।

Advertisment

हालांकि, उनके परिवार को यह एहसास नहीं था कि यह निर्णय उनकी बेटी के जीवन के वास्तविक उद्देश्य को सामने लाएगा। खेतों और प्रकृति के साथ अपना अधिकतर समय बिताते हुए, थिम्मक्का ने प्रकृति के प्रति गहरा लगाव और संवेदनशीलता विकसित की, विशेषकर पेड़ों के प्रति।

सिर्फ बारह साल की उम्र में थिम्मक्का का विवाह चिक्कैया से हुआ, जो रामनगर जिले के हुलिकल गांव के रहने वाले थे।

थिम्मक्का का पहला पेड़ लगाने का सफर

Advertisment

थिम्मक्का ने अपना पहला पेड़ कब लगाया? एक तपती दोपहर, थिम्मक्का और उनके पति सड़क पर चल रहे थे। पेड़ों की कमी के कारण, वे सीधे दोपहर की गर्मी में झुलस रहे थे। थिम्मक्का को यह दृश्य बहुत सूना और निर्जीव लगा।

उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर वहां बरगद और इमली के पेड़ के बीज बोए। यह जोड़ी अपने समय से कहीं आगे थी और उन्होंने आपसी समानता के साथ 'समान शक्ति, समान जिम्मेदारी' का सिद्धांत अपनाया। चिक्कैया गड्ढे खोदते थे और थिम्मक्का पानी के घड़े लेकर पौधों को सींचने का काम करती थीं। सभी बर्तन और अन्य उपकरण उनकी मेहनत से कमाए गए पैसों से खरीदे जाते थे।

चुनौतियां और कठिनाइयां

Advertisment

थिम्मक्का ने अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया। 1991 में उन्होंने अपने पति को खो दिया, जो उनके पर्यावरणीय अभियानों में उनके साथी थे।

पेशेवर मोर्चे पर, 2019 में उनके द्वारा लगाए गए 385 बरगद के पेड़ों पर बागेपल्ली-हालागुरु सड़क चौड़ीकरण के कारण खतरा मंडराने लगा था। लेकिन थिम्मक्का ने इस स्थिति का डटकर मुकाबला किया। वहीं स्वास्थ्य के मोर्चे पर, उन्होंने हाल ही में कूल्हे की सफल सर्जरी करवाई।

सालूमरादा कैसे बनीं थिम्मक्का?

Advertisment

थिम्मक्का ने हमेशा पर्यावरण संरक्षण में अपनी सीमाओं को चुनौती दी है। जब सिंचाई के उचित साधन नहीं थे, तब उन्होंने बारिश के पानी को एकत्र करके पेड़ों को सींचने का काम शुरू किया।

उनके द्वारा लगाए गए 8000 पेड़ों की विशाल संख्या वाकई काबिले तारीफ है। इसी कारण उन्हें 'सालूमरादा' की उपाधि दी गई, जिसका मतलब कन्नड़ में 'पेड़ों की कतार' होता है। तब से, वे एक तरह से पेड़ों की कतार की मानव प्रतीक बन गई हैं।

सालूमरादा थिम्मक्का का जीवन न केवल पर्यावरण संरक्षण का एक उदाहरण है, बल्कि यह प्रेरणा भी देता है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी दृढ़ता और समर्पण से बड़े बदलाव ला सकता है।

Advertisment

Advertisment