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कॉलेज में पढ़ने वाली एक छात्रा होने के कारण मैं अपने घर से दूर एक शहर में रहती हूं। यहां मुझे मेस में बनी हुई पानी जैसी दाल और मशीन की बनी हुई रोटी खानी पड़ती हैं। लेकिन मुझे आज भी मां के हाथ के बने खाने से उतना ही प्यार है जितना पहले था। वह फिर चाहे सादा दाल चावल ही क्यों ना हो उसका स्वाद ही कुछ और होता है।
ज्यादातर बंगाली घरों में आपको मिठाईयां, अचार बनाती हुई महिलाएं और सूरज की धूप में दाल की पकौड़ी सुखाती महिलाएं देखने को मिल जाएंगी। बंगाल में घर की महिलाओं द्वारा बनाए जाने वाला साधारण मगर स्वादिष्ट भोजन आपके पेट तक जाने का रास्ता बना ही लेता है।
उम्मीद से अलग था ये नज़ारा
आप लोग सोच रहे होंगे कि शायद बंगाल में जाकर केवल यही आकर्षित करने वाली चीजें दिखती हैं। लेकिन मेरे इस बार की बंगाल की जर्नी ने मेरे इस विचार को बदल दिया। इस बार जब मैं अपने घर बंगाल गई तो मैंने अपनी दादी को बिल्कुल अलग रूप में पाया। वह 73 साल की एक विधवा है और बहुत अच्छा खाना पकाती है। रोज सुबह 6:00 बजे उठकर पूजा करने और चाय बनाने से लेकर उनके रात को सोने तक की हर बात मुझे याद है।
मैं उन्हें उमा बुलाया करती हूं। उमा का मतलब होता है सती - देवी दुर्गा। हिंदू शास्त्रों में दुर्गा देवी को एक माता, वॉरियर, और दुश्मन का विनाशक समझा जाता है। उमा मुझे हमेशा से खोशा बाटा, मुरी घोंटो और चितोल माचेर मुथ्या जैसी लजीज बंगाली डिश बना कर खिलाया करती थी। लेकिन इस बार सब कुछ बहुत अलग था।
मैंने देखा कि उमा को कुछ पकाने की या फिर गैस को छूने की इजाजत नहीं थी। उन्हें खाने में बहुत ही सादा खाना जैसे फ्रूट्स, साबूदाना और दूध आदि खाने की सख्त हिदायत दी गई थी। वह किसी भी रुप में गर्म खाना नहीं खा सकती थी। मुझे यह सब देखकर बहुत गुस्सा आया और मैंने इसकी जांच की। तब मुझे एक चीज के बारे में पता चला जिसका नाम है अंबुबाची।
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अंबुबाची क्या है?
अंबुबाची बंगाल की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। यह एक त्यौहार है जिसमें महिलाओं खासतौर पर विधवा महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जाती हैं। उनके खाने पर बहुत सी पाबंदियां लगाई जाती हैं। वह इस दौरान कोई भी गरम या मसालेदार खाना नहीं खा सकती। वह चावल और गेहूं को छू तक नहीं सकती।
ऐसा माना जाता है कि अगर वह इस वक्त में बिस्तर या किसी भी दूसरी चीज को छूती है तो वह दूषित हो जाती है। उन्हें बिस्तर पर सोने की मनाही होती है और वह पूरे समय जमीन पर ही सोती हैं। वे नाही शैंपू से अपने बाल धो सकती हैं और ना ही अपने नाखून काट सकती हैं।
क्यों मनाया जाता है अंबुबाची त्योहार?
अंबुबाची त्योहार पर किए जाने वाले इन सभी रिचुअल्स के पीछे यह विश्वास है कि मां कामाख्या का वार्षिक मेंस्ट्रुएशन होता है। यह इंडिया के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है जिसमें सती की योनि है। हिंदू माइथोलॉजी के अनुसार सति को जला दिया गया था। तब शिवा ने उनकी बॉडी को लेकर ऐसा नृत्य किया जो पूरे संसार को नष्ट कर सकता था।
तब विष्णु जी ने इसमें दखल दिया और शिवा को रोकने के लिए सती के शरीर को गिरा दिया। सती का शरीर भारत में कई 'पीठ' पर गिरा। इन्हें शक्तिपीठ भी बोला जाता है। कामाख्या में कोई मूर्ति नहीं है लेकिन हजारों भक्त और पुजारी हर साल यहां देवी सती की योनि(vagina) की पूजा के लिए एकत्रित होते हैं।
प्राचीन समय से ही महिलाओं के पीरियड्स को उन्हें बहुत सी चीजों से दूर रखने के बहाने के रुप में प्रयोग किया गया है। लेकिन यह सवाल है कि आखिर अंबुबाची की यह पाबंदियां केवल कुछ महिलाओं पर ही क्यों? क्या आपने सोचा है कि अगर एक साथ सभी महिलाएं अपनी आम जिंदगी से इस तरह का ब्रेक लेने लगे तो पूरी दुनिया नष्ट हो सकती है?
कितनी अजीब बात है ना कि एक देवी के खून को इतना शुद्ध और पवित्र माना जाता है। जबकि एक साधारण महिला के खून को गंदा और अपवित्र माना जाता है। उन पर हजारों तरह की पाबंदियां लगाई जाती हैं। भारत में एक तरफ मेंस्ट्रुएशन के टैबू को साधारण महिलाओं पर पाबंदियां लगाने का एक जरिया तो वहीं दूसरी तरफ से त्योहार मनाने का एक अवसर माना जाता है।
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