आवारा कुत्तों के हक़ के लिए लड़ने वाली सुप्रीम कोर्ट की वकील ननिता शर्मा कौन हैं?

सुप्रीम कोर्ट की वकील ननिता शर्मा, जो दशकों से जनहित से जुड़े मामलों में सक्रिय रही हैं, एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने आवारा कुत्तों को हटाने के आदेश को चुनौती दी है।

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Rajveer Kaur
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The Supreme Court Lawyer Fighting For Stray Dogs

Photograph: (ANI)

भारत के सुप्रीम कोर्ट में ज़्यादातर दिनों में वरिष्ठ वकील ननिता शर्मा वही करती दिखती हैं, जो वह पिछले करीब चालीस सालों से कर रही हैं। उन लोगों की मदद करना, जिनकी आवाज़ कोई नहीं सुनता। कभी वह किसी प्रवासी मज़दूर का केस लड़ती हैं, कभी किसी दंगे के पीड़ित का और कभी-कभी, जैसा हाल ही में हुआ, वह ऐसे जानवरों के लिए लड़ती हैं जो बोल नहीं सकते, लेकिन जिन्हें कानून के तहत सुरक्षा मिलनी चाहिए।

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आवारा कुत्तों के हक़ के लिए लड़ने वाली सुप्रीम कोर्ट की वकील ननिता शर्मा कौन हैं?

शर्मा के लिए अदालतों की सुर्खियों में रहना कोई नई बात नहीं है। उन्होंने बदलती न्यायिक सोच, राजनीतिक उतार-चढ़ाव और संविधान से जुड़ी दशकों लंबी बहसों के बीच लगातार काम किया है।

फिर भी, जब इस हफ़्ते वह सुप्रीम कोर्ट के बाहर खड़ी थीं और आवारा कुत्तों पर आए फैसले पर उनकी कांपती आवाज़ में प्रतिक्रिया सुनी गई, तो वह पल पूरे देश का ध्यान खींच लाया।

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उनकी प्रतिक्रिया भावनात्मक थी शांत, लेकिन मज़बूत। उनके लिए यह पल सिर्फ़ आवारा कुत्तों के बारे में नहीं था, बल्कि इस बारे में था कि हमारा न्याय तंत्र उन लोगों या प्राणियों के साथ कैसा व्यवहार करता है जिनके पास कोई ताकत नहीं है।

ज़मीन से जुड़ी एक कानूनी यात्रा

शर्मा ने 1988 में दिल्ली बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद वकालत शुरू की। उन्होंने होली चाइल्ड स्कूल और फिर दिल्ली के जीसस एंड मैरी कॉलेज से पढ़ाई की। वह कहती हैं कि उनका सफर आसान या चमकदार नहीं था, बल्कि लगातार मेहनत और समय के साथ बना।

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1995 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड की परीक्षा पास की। यह एक खास दर्जा होता है, जो वकील को सीधे सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल करने और बहस करने की अनुमति देता है।

इसके बाद शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, ट्रिब्यूनल और उपभोक्ता आयोगों में कई तरह के मामलों पर काम किया जैसे संविधान से जुड़े मुद्दे, संपत्ति विवाद, अपराध से जुड़े केस, उपभोक्ता अधिकार और बौद्धिक संपदा के मामले।

उनके केस इतिहास में कई ऐसे महत्वपूर्ण मामले शामिल हैं जिन्होंने देशभर में बहस छेड़ी जैसे बाबरी मस्जिद विवाद, दिल्ली दंगे के केस, जामिया मिलिया से जुड़े मामले और कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों पर दायर याचिकाएँ।

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शर्मा ने एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) के रूप में भी काम किया है यानी अदालत की मदद करने वाली एक निष्पक्ष विशेषज्ञ के रूप में। उन्हें भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी में भी नामित किया गया था। उन्होंने कई प्रो बोनो (नि:शुल्क) मामले लड़े और कमजोर वर्गों के समर्थन में जनहित याचिकाएँ दायर कीं।

शर्मा ने 1980 के दशक के आखिर में वकालत शुरू की, जब भारत में अदालतों के ऊपरी स्तरों पर महिलाओं की संख्या बहुत कम थी। उनका कोई कानूनी या राजनीतिक परिवारिक बैकग्राउंड नहीं था, फिर भी उन्होंने अपनी पहचान खुद बनाई और अपनी प्रैक्टिस अपने दम पर खड़ी की।

उनके साथी कहते हैं कि शर्मा ने उस अदालत में अपनी जगह बनाई है जहाँ ज़्यादातर वरिष्ठ पुरुष वकील हावी रहते हैं। इसके लिए लगातार मेहनत, धैर्य और आत्मविश्वास की ज़रूरत होती है। वह मीडिया से दूर रहकर, कानून के दायरे में रहकर बदलाव लाने के लिए जानी जाती हैं।

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वह मामला जिसने फिर ध्यान खींचा

इस महीने सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आवारा कुत्तों को स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक जगहों से हटाकर शेल्टर में रखा जाए। अदालत ने यह फैसला बढ़ते कुत्ता काटने के मामलों को देखते हुए दिया।

लेकिन ननिता शर्मा का कहना है कि यह एनिमल बर्थ कंट्रोल नियमों के खिलाफ है, जिनमें नसबंदी के बाद कुत्तों को उसी जगह छोड़े जाने की बात कही गई है।

ननिता शर्मा: कानून, करुणा और न्याय की आवाज़

सुप्रीम कोर्ट के बाहर ननिता शर्मा ने कहा कि आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश बेजुबान जानवरों के साथ अन्याय है। उन्होंने कहा, “ऐसे जानवरों के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए… मैं अब भी ईश्वरीय न्याय पर विश्वास रखती हूं।”

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उनका कहना है कि कानून के अनुसार नसबंदी के बाद कुत्तों को उसी जगह छोड़ा जाना चाहिए, और शेल्टर भी मानवीय होने चाहिए।

शर्मा लंबे समय से जनहित के मामलों में काम कर रही हैं। वह कॉन्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया) की महासचिव हैं और उन्होंने कई याचिकाएँ दायर की हैं जो स्वास्थ्य, अधिकारों और गरिमा से जुड़ी हैं।

आवारा कुत्तों का मामला अब सिर्फ़ सुरक्षा तक सीमित नहीं रहा यह इंसानियत, संवेदना और कानून के संतुलन की बात बन गया है।

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ननिता शर्मा की सोच साफ़ है, असली न्याय वही है जो कमजोरों की भी रक्षा करे।