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Patriarchy Starts At Home:- पित्तरसत्ता की शुरुआत हमारे घर में होती है लेकिन हमें इसका पता नहीं चलता है क्यूँकि हम ऐसे व्यवहार की नोर्मल मानते हैं और इसकी पहचान नहीं कर पाते है। समाज का इसका बहुत बढ़ा रोल है क्यूँकि हम सदियों से चल रहे इस व्यवहार को अमान्य करने को तैयार नहीं है-
Patriarchy: पित्तृसत्ता की शुरआत हमारे घर से होती है, जानिए कैसे ?
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शाम को महिलाओं को घर से बाहर नहीं जाना चाहिए-
पित्तरसत्ता समाज में आज भी माना जाता बाई महिलाओं का घर से बाहर जाना असुरक्षित नहीं है। उन्हें शाम के समय घर से बाहर नहीं जाना चाहिए लेकिन क्या उन लोगों की लगाम लगाई जाती है जो माहौल को असुरक्षित बनाते है? -
महिलाएँ आख़िर में खाती है
आज भी भारतीय घरों में महिलाएँ सबसे बाद घर में खाना खाती है। ऐसा ही आगे बेटियों को सिखाया जाता है और बहुओं से आशा की जाती है। यह सदियों की पित्तरसत्ता सोच नतीजा है। -
औरत औरत की दुश्मन
यह भी पित्तरसत्ता सोच का नतीजा है। आज भी बहुत लोग सोचते है महिलाएँ ही महिलाओं की सबसे बढ़ी दुश्मन होती है। -
जन्म देने वाली माँ होती है।
सिर्फ़ जन्म देने वाली माँ नहीं होती है माँ एक व्यवहार है । जब आप किसी का पालन पौषण करते है उसे प्यार करते है उसकी परवाह करते वो माँ है। -
LGBTQ को अलग नज़र से देखना
पित्तरसत्ता सोच में LGBTQ के प्रति डर सिखाया जाता है। बच्चों को ट्रांसजेंडर के बारे में ग़लत शिक्षा दी जाती है। इस व्यवहार की बदलने की ज़रूरत है। -
फ़ैमिली में माँ-बाप दोनों का होना ज़रूरी है-
परिवार में माँ-बाप दोनो का होना ज़रूरी नहीं है क्यूँकि ऐसी बहुत सारी समस्याएँ आ जाती है जब माँ-बाप अलग हो जाते है। ऐसे समय में समाज ऐसे बच्चों को अलग नज़र से देखता है। यह पित्तरसत्ता सोच का नतीजा है। ज़रूरी नहीं है हर किसी के पास conventionel फ़ैमिली हो।