Motherhood Myths: माँ बनने से जुड़ी 5 ग़लतफ़हमियाँ जिन्हें अब छोड़ देना चाहिए

क्या आप भी इन माँ बनने से जुड़ी ग़लतफ़हमियों को सच मानते हैं? जानिए वो 5 मिथक जिन्हें अब हमें छोड़ देना चाहिए और क्यों माँ बनने का अनुभव हर महिला के लिए अलग होता है।

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Vaishali Garg
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Motherhood

Motherhood Myths: माँ बनने का अनुभव अद्वितीय होता है। ये न केवल एक नई ज़िंदगी लाती है, बल्कि यह हमारी सोच, दृष्टिकोण और खुद को जानने का तरीका बदल देती है। लेकिन, समाज में अक्सर माँ बनने को लेकर कई ग़लतफ़हमियाँ और पूर्वाग्रह होते हैं, जो इस खूबसूरत सफर को और भी मुश्किल बना सकते हैं। कुछ मिथक इतने आम हो गए हैं कि हम उन्हें सच मानने लगते हैं। पर अब समय आ गया है कि हम इन ग़लतफ़हमियों को नकारें और एक नई सोच अपनाएं।

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माँ बनने से जुड़ी 5 ग़लतफ़हमियाँ जिन्हें अब छोड़ देना चाहिए

1. "माँ बनने के बाद तुम सब कुछ भूल जाती हो।"

सबसे पहला और सबसे आम मिथक ये है कि जैसे ही कोई महिला माँ बनती है, उसकी अपनी पहचान और सपने खत्म हो जाते हैं।

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सच ये है कि एक माँ के रूप में नई जिम्मेदारियां आती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो अपनी पहले वाली ज़िंदगी, करियर, और खुद को भूल जाती है। माँ बनना एक बड़ा बदलाव है, लेकिन यह किसी की पहचान या आत्मा को खत्म नहीं करता। महिलाएं अपने बच्चों को प्यार देने के साथ-साथ अपने सपनों को भी पूरा कर सकती हैं।

2. "प्राकृतिक जन्म ही सबसे बेहतर है।"

यह मिथक भी बेहद सामान्य है, कि एक माँ को हमेशा प्राकृतिक तरीके से ही जन्म देना चाहिए।

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सच्चाई ये है कि हर महिला और हर गर्भावस्था अलग होती है। अगर किसी महिला को सी-सेक्शन के द्वारा जन्म देना पड़ा, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह कमज़ोर है या कम अच्छी माँ है। प्राकृतिक जन्म से ज़्यादा महत्वपूर्ण है माँ और बच्चे की सेहत, और ये दोनों विकल्प equally valid हैं।

3. "माँ बनने के बाद तुम्हारा शरीर बदल जाता है और तुम्हें इसे स्वीकार करना चाहिए।"

हर गर्भावस्था और माँ बनने का अनुभव अलग होता है, और ऐसा कहना कि हर महिला को अपनी "माँ बनने वाली बॉडी" को बिना किसी सवाल के स्वीकार करना चाहिए, गलत है।

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सच तो यह है कि महिलाओं को अपने शरीर से प्यार और सम्मान करना चाहिए, चाहे उनका शरीर कैसा भी हो। अगर किसी महिला को अपनी बॉडी में बदलाव को लेकर असहजता होती है, तो उसे खुद को बदलने का हक़ है यह एक व्यक्तिगत यात्रा है। हम सभी का शरीर अलग होता है, और खुद से प्यार करना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

4. "माँ बनने के बाद तुम्हारी ज़िंदगी सिर्फ बच्चे के चारों ओर घूमेगी।"

यह मिथक भी बहुत फैल चुका है, कि माँ बनने के बाद एक महिला की ज़िंदगी सिर्फ अपने बच्चे के लिए समर्पित हो जाती है।

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सच यह है कि एक माँ अपनी ज़िंदगी में और भी बहुत कुछ कर सकती है  वह अपनी करियर, अपने दोस्तों, अपने शौक, और अपनी ख्वाहिशों को नहीं छोड़ती। माँ बनने का मतलब यह नहीं कि महिला अपनी बाकी ज़िंदगी को त्याग दे। अगर कुछ बदलाव होते हैं, तो वे समय और प्रायरिटी में होते हैं, न कि अपनी पहचान को खोने में।

5. "माँ बनने के बाद तुम्हें हमेशा खुश और संतुष्ट रहना चाहिए।"

यह मिथक काफी दबाव डालता है, कि एक माँ हमेशा खुश और संतुष्ट दिखनी चाहिए। सच तो यह है कि माँ बनना एक कठिन और चुनौतीपूर्ण काम हो सकता है। हर माँ के पास अच्छे और बुरे दिन होते हैं। कोई भी माँ हमेशा खुश नहीं रह सकती। माँ बनने का सफर भावनात्मक, मानसिक, और शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, और यह स्वाभाविक है कि कभी-कभी महिला थकावट और संघर्ष महसूस करे। 

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यह जरूरी नहीं कि हर समय मुस्कान के साथ काम करना चाहिए कभी-कभी अपने संघर्ष को स्वीकार करना और खुद से दया करना भी जरूरी होता है।

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