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कवि जयशंकर प्रसाद ने साहित्य में छायावाद प्रारंभ किया
जयंती विशेष: आज ही के दिन छायावाद के प्रवर्तक कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी, उत्तर प्रदेश में हुआ। कवि जयशंकर प्रसाद ने कविता ही नहीं नाटक, उपन्यास, कहानियों और निबंध सबमें अपनी लेखनी छोड़ी। उनका प्रसिद्ध रचना कामायनी को आज भी साहित्य प्रेमी बड़ी गंभीरता से पढ़ते हैं।
जयशंकर प्रसाद इंदु पत्रिका के संपादक थे। इसके साथ ही उनकी रचनाओं में कामायनी के अलावा आंसू, झरना, लहर, उर्वशी, अजातशत्रु, कंकाल, तितली, कामना, चंद्रगुप्त, राज्यश्री, प्रेम-पथिक जैसी अन्य रचनाएं हैं। प्रेम, सौंदर्य और रोमांच से परिपूर्ण कवि जयशंकर प्रसाद की रचनाओं से छायावाद का प्रारंभ हुआ। आइए जानें कवि जयशंकर प्रसाद के विचार :-
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- दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान।
- अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दु:ख और पतन की बारी आती है।
- आत्म-सम्मान के लिए मर-मिटना ही दिव्य जीवन है।
- जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है।
- निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है। घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।
- मनुष्य, दूसरों को अपने मार्ग पर चलाने के लिए रुक जाता है, और अपना चलना बन्द कर देता है।
- स्त्री का हृदय प्रेम का रंगमंच है।
- पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।
- जिसकी भुजाओं में दम न हो उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए।
- ऐसा जीवन तो विडंबना है जिसके लिए दिन-रात लड़ना पड़े।
- संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ।
- अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।
- जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है—प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।
- स्त्री जिससे प्रेम करती है उसी पर सर्वस्व वार देने को समर्पित हो जाती है।
- दो प्यार करने वालों के बीच स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है।
- क्षमा पर केवल मनुष्य का अधिकार है, वह हमें पशु के पास नहीं मिलती।
- पढ़ाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है।
- समय बदलने पर लोगों की आंखें भी बदल जाती हैं।
- जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता उसे ले लेने की स्पर्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं।
- असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले कर्मक्षेत्र में कांपकर लड़खड़ाओं मत।
- प्रेम महान है, प्रेम उदार है। प्रेमियों को भी वह उदार और महान बनाता है। प्रेम का मुख्य अर्थ है—आत्मत्याग।
- इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।
- हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।
- सत्य इतना विराट है कि हम क्षुद्र जीव व्यवहारिक रूप से उसे संपूर्ण ग्रहण करने में प्राय: असमर्थ प्रमाणित होते हैं।
- सेवा सबसे कठिन व्रत है।
इस तरह कवि जयशंकर प्रसाद ने प्रेम और मानव मूल्यों से जुड़े विचार साझा कर अपनी लेखनी को सर्वोत्तम रूप दिया।