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Debate on feminism: मर्दों को भी ज़रूरत है फेमिनिस्म पर बात करने की

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Rajveer Kaur
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Real Meaning Of Feminism

फेमिनिज्म के बारे में हमारे समाज में बहुत सी नकारात्मक धारणायें बनी हुई है। हमें लगता है फेमिनिज्म का मतलब सिर्फ़ मर्दों को नीचा दिखाना है और उनसे नफ़रत करना है। औरतों के स्तर को ऊपर उठाना है। सोशल मीडिया पर भी लोग फेमिनिज्म को लेकर दो हिस्सों में बटे हुए है।आज के समय में यह टॉपिक विवादित हो गया है।

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क्या है यह फ़ेमिनिज़म?

आज बहुत से ऐसे लोग है जिन्होंने फेमिनिज्म के बारे में पता नहीं है बस जो सुना है या सोशल मीडिया पर देखा है उसी को सच मान रहे है।

फेमिनिज्म पर प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखिका लौरा बेट्स, अपनी पुस्तक एवरीडे फेमिनिज्म में आंदोलन के बारे में बात करते हुए लिखती हैं, “यह पुरुष बनाम महिला मुद्दा नहीं है।  यह लोगों बनाम पूर्वाग्रह के बारे में है।"  

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यदि हम पाठ्यपुस्तकों को देखें, तो नारीवाद "लिंगों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता" में विश्वास है। नारीवाद जिस मूल मूल्य का पालन करता है और समानता का उपदेश देता है, वह न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पुरुषों के लिए भी है। इसका उद्देश्य पितृसत्ता से छुटकारा पाना है, जो एक व्यापक रूप से जहरीली बीमारी है जो समाज में मौजूद है, कभी-कभी स्पष्ट और कभी-कभी छिपे हुए रूपों में।

मर्दों को ज़रूरत है फेमिनिज्म पर बात करने की 

अगर हम चाहते है कि फेमिनिज्म के बारे में लोगों के बीच एक सकारात्मक छवि बने और लोग यह भी समझे कि यह मर्दों और औरतों के बीच का मुद्दा नहीं है तो हमें मर्दों की भी इसमें शामिल करना होगा। अगर पुरुष  इस बात को समझेंगे कि औरतों के साथ हर स्थान पर किसी ना किसी तरीक़े से अन्याय होता है चाहे वे घर, स्कूल, ऑफ़िस हो तब इस चीज़ में बदलाव हो सकता है। जब तक हम किसी चीज़ को मानते नहीं है तब तक उसमें बदलाव नहीं आता है। इसी तरह जब हम मानेंगे की औरतों के साथ कुछ ग़लत हो रहा तब ही हम उस चीज़ में बदलाव कर सकेंगे।

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पितृसत्ता सोच ने आज भी लोगों के मन में घर किया हुआ है। इसमें जेंडर के आधार पर काम निश्चित किए हुए है और उनको इसी के हिसाब से काम करने पढ़ेंगे। जैसे औरतों को घर के काम करने है, आधी रात को बाहर नहीं जाना, शादी करना और अपने पति की बात माननाआदि ऐसे ही बहुत से रोल औरतों के लिए सेट किए हुए है।

इसके अलावा मर्दों को सिर्फ़ बाहर का काम करना है। मर्द रो नहीं सकते। यह सोच टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी को बढ़ावा देता है। अगर मर्द भी इस पर बात करेंगे तो औरतें को उनके हक़ ही नहीं बल्कि मर्दों को भी टाक्सिक मैस्क्युलिनिटी से छुटकारा मिलेगा।

men is a part of feminism
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