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Dev Uthani Ekadashi 2022: देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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Vaishali Garg
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Dev Uthani Ekadashi 2022: दिवाली के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष तिथि की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रुप में जाना जाता है। कार्तिक महीना में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं। इसे देवोत्थान एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।देव शयनी एकादशी के बाद श्रीहरि का शयन काल शुरू होता है जो चतुर्मास के चार महीने तक रहता है। देवउठनी एकादशी के बाद से सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू हो जाते है। 24 एकादशियों में देवउठनी एकादशी सबसे बड़ी और बहुत महत्वपूर्ण एकदाशी मानी जाती है। इस साल देवउठनी एकादशी 4 नवंबर 2022 को है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से जगत के पालनहार भगवान विष्णु सृष्टि का कार्यभार संभालेंगे।

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Dev Uthani Ekadashi 2022: देवउठनी एकादशी पूजन का शुभ मुहूर्त

प्रबोधिनी एकादशी व्रत : 4 नवंबर 2022 , शुक्रवार एकादशी तिथि का प्रारंभ- 3 नवंबर 2022 , गुरुवार , शाम 07:30 मिनट से। एकादशी तिथि समाप्त होने का समय 4 नवंबर 2022 को सायं 06:08 मिनट पर। पारण का समय - नवम्बर 05 , 2022 को सुबह 06 बजकर 41 मिनट से 08 बजकर 57 मिनट तक।

Dev Uthani Ekadashi 2022: देवउठनी एकादशी पूजा विधि

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देवउठनी एकादशी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और व्रत का संकल्प लें। एकादशी के दिन पूरा समय भगवान विष्णु का ध्यान करें। इसके बाद घर की अच्छे से सफाई करें और आंगन में भगवान विष्णु के पैरों की आकृति बनाएं। इस दिन घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाने चहिए। रात में भगवान विष्णु समेत सभी देव दावताओं का पूजन करना चाहिए। इसके बाद शंख और घंटियां बजाकर भगावन विष्णु को उठाना चाहिए।

Dev Uthani Ekadashi 2022: देवउठनी एकादशी का म्हत्व

देवउठनी एकादशी सभी एकादशी विशेष महत्व रखती है, इस दिन श्री हरी य़ानी भगवान श्री विष्णु जी माहाराज ( सृष्टि के पालनहार ) निद्रा से जागते है और चतुर्मास की समाप्ती होती है और सारे मांगलिक कार्य प्रारम्भ होतें हैं, इस दिन व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ती होती है। 

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Dev Uthani Ekadashi 2022: भगवान विष्णु की इस तरह करें

स्तुति शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् । लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत : स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदेः । सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा : । ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो यस्यातं न विदुः सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम : ॥

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