Domestic Violence Against Man: मेल डोमेस्टिक वायलेंस, यानी पुरुष जिनके खिलाफ डोमेस्टिक वायलेंस, अभी भी हमारे समाज में मज़ाक की टॉपिक है। जब हम ‘डोमेस्टिक वायलेंस’ या ‘घरेलु हिंसा’ जैसे शब्द खबर में सुनते हैं, हम तुरंत मान लेते हैं की एक क्रूर आदमी अपने कमज़ोर, डरी, सेहमी सी पत्नी को मारता है। खबर सुनने से पहले ही हम एक महिला की छवि मन में बना लेते हैं। हम ऐसा क्यों नहीं सोचते की हिंसक महिला भी हो सकती है? पुरुष भी पीड़ित हो सकता है?
Domestic Violence Against Man: स्टेटिस्टिक्स क्या कहते हैं?
स्टेटिस्टिक्स के अनुसार, केवल भारत में 51.5% पुरुष इंटीमेट पार्टनर वायलेंस, यानी अपने रोमांटिक पार्टनर द्वारा हिंसा, के शिकार है। इसका मतलब 1000 में 515 (आधे से ज़्यादा) शादी शुदा पुरुष डोमेस्टिक वायलेंस के किसी रूप से पीड़ित हैं।
हाल ही में हमने जोहनी डेप और एम्बर हरड़ के केस को भी देखा, जिसमें पाया गया की जोहनी डेप डोमेस्टिक वायलेंस के शिकार थे। कुछ साइकिएट्रिस्ट का मानना है कि दोनों एक दुसरे के खिलाफ हिंसक थे, मगर जोहनी का हिंसा डिफेंस में किया गया था।
Domestic Violence Against Man: कानून क्या कहता है?
भारत में डोमेस्टिक वायलेंस के दायरे में, शारीरिक, मेन्टल और इमोशनल टॉर्चर आता है। इसमें ब्लैकमेल और dowry harassment भी आता है। समस्या यह है, कि यह सब महिला के लिए। एक महिला IPC के सेक्शन 498 के तहत अपने पति या उसके परिवार के खिलाफ डोमेस्टिक वायलेंस का केस डाल सकती है पर पुरुष अपनी पत्नी के खिलाफ ऐसा नहीं कर सकता।
भारत के वायलेंस और अब्यूस के कानून महिला केंद्रित हैं। रेप और डोमेस्टिक वायलेंस के कानून पूरी तरह से इस बात को कैंसिल कर देते हैं कि पुरुष के साथ भी अब्यूस हो सकता है। इसके पीछे की वजह पैट्रिआर्की(Patriarchy) है। आदमी को औरत से ताकतवर समझना इन बायस कानून के पीछे की वजह है।
आदमी के लिए प्रावधान क्या है?
आदमी को अब्यूस और डोमेस्टिक वायलेंस से बचाने वाले कानून के कमी के वजह से उन्हें पूरी तरह से इन्साफ कभी नहीं मिलता है। साथ ही, कानूनों के एक तरफ़ा होने के कारण अधिकतर मर्द डोमेस्टिक विजलेंस सहते हैं, और सामने नहीं आते।
कानून के बात के अतिरिक्त, सामाजिक नियमों और स्टीरियोटाइप के कारण भी डोमेस्टिक वायलेंस से पीड़ित आदमी चुप चाप वायलेंस सहते हैं। ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ वाली ख़राब, ऑर्थोडॉक्स सोच मर्दों को अपने दर्द का समाधान से रोकती है। एक आदमी अपने दर्द को क्यों छुपाए?
डोमेस्टिक वायलेंस चाहे आदमी के ओर हो या औरत के, इग्नोर ही होती है। मान लिया गया है की औरत को अपने जेंडर के वजह से वायलेंस सहना होगा, और आदमी को हो तो इसे संभव ही नहीं माना जाता। हमें इस सोच को बदलने की ज़रूरत हैं।