आज के युग में भी दहेज जैसी कुप्रथा से तंग आकर महिलाएं अपनी जान ले रही हैं। इससे बड़ा सामाजिक अपराध और कुछ नहीं हो सकता। सदियों से चली आ रही इस कुप्रथा को रोकने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन अभी तक पूर्ण रूप में सफलता नहीं मिली है।
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