Beauty Standards: समाज कैसे हमारे सोचने का तरीका बदल देता है

जिस समाज में रहते हैं, वहां सुंदरता को लेकर कुछ तय मानक यानी beauty standards तय कर दिए गए है, जैसे त्वचा के रंग से लेकर शरीर की बनावट और चेहरे की विशेषताएं यहाँ तक कि स्तनों का आकार भी एक खास तरीके का तय किया गया है।

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Tamnna Vats
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Beauty Tips(FREEPIK)

How society makes our perception biased: जिस समाज में रहते हैं, वहां सुंदरता को लेकर कुछ तय मानक यानी beauty standards तय कर दिए गए है, जैसे त्वचा के रंग से लेकर शरीर की बनावट और चेहरे की विशेषताएं यहाँ तक कि स्तनों का आकार भी एक खास तरीके का तय किया गया है।यही कारण है कि महिलाओं के मन में अपने शरीर को लेकर एक खास किस्म की सोच बन गई  है, जो उनके आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को प्रभावित करती है।

Beauty Standards: समाज कैसे हमारे सोचने का तरीका बदल देता है

मीडिया और फिल्में 

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हमेशा से ही टीवी, फिल्मों, विज्ञापनों और सोशल मीडिया के जरिए ‘परफेक्ट बॉडी’ का चित्र विशेष प्रकार से दिखाया गया है। इन प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी महिलाओं को दिखाया जाता है जिनका शरीर एक निश्चित ढांचे सा बना होता है, जैसे जिनके स्तन बड़े, गोल और संतुलित होते हैं। समय के साथ ये छवि ने हमारे मन में यह विश्वास पैदा कर दिया है कि ‘सुंदर’ और ‘आकर्षक’ बनने के लिए स्तनों का एक खास आकार होना ज़रूरी है।

तुलना और आत्म-शंका

समाज की दिखाई इन छवियों से महिलाएं अपनी तुलना करने लगती है और अपने शरीर के लिए असंतोष और आत्म-संदेह को जन्म देती है। सोचती है कि अगर उनका शरीर वैसा नहीं है जैसा समाज दिखाता है, तो वे कम आकर्षक हैं और महिला के रूप में संपूर्ण नहीं हैं। 

सुन्दरता का दबाव

ब्यूटी इंडस्ट्री भी यह सोच फैलाती है कि जब तक महिलाओं का शरीर एक खास तरीके का नहीं होता, तब तक वह अच्छा नहीं माना जाता। इसलिए वह ब्रेस्ट फर्मिंग क्रीम, पुश-अप ब्रा, सर्जरी के ऑफर जैसे प्रोडक्ट्स बेचती है। इससे महिलाओं को लगता है कि उनके शरीर में कमी है। इसी दबाव की वजह से कई महिलाएं महंगे और खतरे वाले तरीके अपनाने लगती हैं।

विविधता और वास्तविकता

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यह एक अटल सत्य है कि हर महिला का शरीर अलग होता है और हर आकार, रंग, बनावट की महिला खूबसूरत होती है। शारीरिक बनावट के अनुसार स्तनों का आकार भी अलग- अलग होता है। साथ ही आनुवंशिक, हार्मोनल और व्यक्तिगत विकास पर निर्भर करता है। ‘सही’ या ‘गलत’ जैसे शब्द यह लागू नहीं होते और ही होने चाहिए। क्योंकि यहसिर्फ ‘विविधता’ होती है इसलिए यह जरूरी है कि हम विविधता को स्वीकार कर इसकी इज्ज़त करें।

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