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International Men's Day
International Men's Day: हमारे समाज में औरतें तों पित्तरसत्ता सोच का शिकार होती है लेकिन मर्द भी इससे बचे नहीं है। उन्हें भी बहुत सारी चीजों का सामना करना पड़ता है। शायद ये औरतों से कम हो सकता हैं लेकिन शिकार इस चीज़ का मर्द भी होते हैं-
International Men's Day: ऐसी चीज़ें जो अक्सर मर्दों को सुननी पड़ती है
हर साल 19 नवंबर को इंटरनेशनल मेंस डे मनाया जाता है। इस साल का थीम 'जीरो मेल सुसाइड' है। इसकी शुरुआत 1999 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्ट इंडीज, त्रिनिदाद टोबैगो में हिस्ट्री प्रोफेसर डॉ. जेरोम टीलुकसिंह सिंह के द्वारा की गई थी।
1. इमोशंज़ को व्यक्त करने नहीं दिया जाता
मर्दो को इस चीज़ को लेकर बहुत सहन करना पड़ता है कि वे अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करने सकते। शुरू से ही उन्हें सिखाया जाता है कि मर्द रोते नहीं है। यह औरतों का काम है। रोना कमजोरी की निशानी है। बचपन में भी जब लड़का रोटा है उसे अक्सर कह दिया जाता है क्या लड़कियों की तरह रो रहे हैं।
2. घर की ज़िम्मेदारियों का बोझ
समाज में सिर्फ़ मर्दों पर घर की ज़िम्मेदारियों का बोझ डाला जाता है। उन्हें ही घर पर कमाकर लाना है। अगर मर्द नहीं कमाकर लाता उसे निक्कमा बोला जाता है। इस बात को लेकर समाज में मर्दो को बहुत बातें सुननी पड़ती है। बहुत कम उम्र में उनके ऊपर कमाने का प्रेशर आ जाता है।
3. मेकअप नहीं कर सकते
आज भी समाज की यह सोच है कि मेकअप सिर्फ़ औरतें ही कर सकती है। जिन मर्दों को मेकअप का शौंक है उन्हें समाज में बहुत सी बातों का सामना करना पड़ता है। लोग उनकी सेक्शूऐलिटी पर सवाल उठाने लग जाते हैं। हमें इस बात को समझने की जरुरत है कि मर्द का कोई जेंडर नहीं होता।
4. होममेकर नहीं हो सकते
यह भी एक धारणा है कि मर्द होममेकर नहीं हो सकते। उन्हें सिर्फ बाहर का काम करना है। घर का काम तों औरतों की ज़िम्मेदारी होती है। यह हम सब ने खुद ही रोल बनाएं है। असल में यह एक चॉइस है। इसमें जेंडर का कोई रोल नहीं है।
5. मर्द को दर्द नहीं होता
मर्द भी इंसान होते है। उन्हें भी दर्द होता है। उनके अंदर भी फ़ीलिंग होती है। उन्हें भी सपोर्ट की ज़रूरत होती है। अक्सर इस बात के कारण मर्द बहुत ज्यादा असंवेदनशील बन जाते हैं। जब उन्हें कोई चीज़ दुःख देती तब भी वे खुलकर बता नहीं पाते।
6. मर्दों को स्पोर्ट्स पसंद होती है
जी नहीं, यह एक अवधारणा है। ज़रूरी नहीं है कि मर्दों को स्पोर्ट्स पसंद हो। ये हर व्यक्ति की अपनी एक पसंद है। इस पर जज करना बिल्कुल ठीक नहीं है।