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Midlife Women Juggling Caregiving and Work: मिडलाइफ़ एक ऐसा दौर है जिसके बारे में कोई खुलकर बात नहीं करता, लेकिन इसके बारे में बात करना बहुत ज़रूरी है। इस समय आपको अपने करियर पर ध्यान देना होता है, बच्चे बड़े हो रहे होते हैं जिनकी जिम्मेदारी भी आप पर होती है और अगर माता-पिता हैं तो उनकी देखभाल भी करनी पड़ती है।इन सबके बीच कई बार महिलाएँ खुद को भूलने लगती हैं और अपने लिए समय नहीं निकाल पातीं। आज हम बात करेंगे कि इस दौर में बैलेंस कैसे बनाया जाए।
Midlife Tips: महिलाएं जिम्मेदारियों के बीच खुद के लिए भी कैसे समय निकालें
स्थिति को समझें और स्वीकार करें
सबसे पहले आपको अपनी स्थिति को समझना और स्वीकार करना होगा। याद रखें, आप अकेली नहीं हैं। आपकी उम्र की बहुत सी महिलाएँ इस दौर से गुजर रही हैं। इसलिए खुद से धैर्य और प्यार रखें। अगर चीज़ें आपके कंट्रोल में नहीं हैं या आप परफेक्ट नहीं बन पा रहीं तो कोई बड़ी बात नहीं। खुद को समय दें, क्योंकि मिडलाइफ़ उतार-चढ़ाव से भरा दौर है।
सेल्फ-केयर नॉन-नेगोशिएबल है
बहुत सी महिलाएँ जब ओवरवेल्म हो जाती हैं तो दूसरों के लिए समय निकालने लगती हैं और अपनी सेहत और मानसिक संतुलन को नज़रअंदाज़ कर देती हैं लेकिन सेल्फ-केयर ज़रूरी है। यह आपको भावनात्मक तौर पर मज़बूत बनाता है, एनर्जी देता है और पॉज़िटिव फील कराता है। इसलिए खुद के लिए थोड़ा समय ज़रूर निकालें।
"ना" कहना सीखें
महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या है कि वे हर काम को "हाँ" कहती हैं लेकिन आपको ज़रूरी है कि बच्चों को भी थोड़ा इंडिपेंडेंट बनाएं ताकि वे हमेशा आप पर निर्भर न रहें। बड़ों की जिम्मेदारी निभाना सही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप हमेशा "हाँ" ही कहें। आप अपनी स्थिति उन्हें समझा सकती हैं, ताकि वे भी आपको समझ सकें।
बाउंड्रीज़ बनाना ज़रूरी है
जब तक आप अपनी सीमाएँ (Boundaries) तय नहीं करेंगी, तब तक लोग आप पर हावी होते रहेंगे। अगर आप स्पष्ट कर देंगी कि आपकी भी अपनी लाइफ है और आप हर समय उपलब्ध नहीं रह सकतीं, तो दूसरे भी आपकी इज़्ज़त करेंगे। बाउंड्रीज़ आपको अपने जीवन पर कंट्रोल रखने में मदद करती हैं।
सपोर्ट माँगने में शर्म न करें
हर चीज़ अकेले संभालना ज़रूरी नहीं। बच्चों और माता-पिता की जिम्मेदारी सिर्फ आपके ऊपर नहीं है। आप अपने पति, भाई-बहन या दोस्तों से मदद माँग सकती हैं। वर्क-लाइफ बैलेंस बनाएँ, ज़रूरत पड़े तो छुट्टी लें। हर काम के लिए "हाँ" मत कहें। अपनी बॉडी और दिल की सुनें और उसी के हिसाब से फैसले लें, न कि दूसरों की सोच के आधार पर।