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जानिए पर्वतारोही संतोष यादव के बारे में कुछ ख़ास बातें

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Swati Bundela
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संतोष यादव पुरे संसार की पहली महिला थी जिन्होंने माउंट एवेरेस्ट की चढ़ाई "Kangshung Face " से की । 1992 में पहली बार संतोष माउंट एवेरेस्ट के शिखर तक पहुंची और 1993 में फिर उन्होंने इस इतिहास को दोहराया और फिर से माउंट एवेरेस्ट के शिखर पर जा पहुँची । उनके 1992 के मिशन के दौरान उन्होंने अपना ऑक्सीजन शेयर करते हुए एक climber "मोहन सिंह " की जान भी बचाई।

संतोष यादव की एजुकेशन

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वो जयपुर के महारानी कॉलेज में पढ़ती थी और अपने रूम की खिड़की से mountaineers को अक्सर देखा करती थी। इसी दौरान वो mountaineering से बहुत ही प्रभावित हुईं और उन्होंने भी पहाड़ चढ़ने की ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और इसलिए उन्होंने उत्तरकाशी नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग (Nehru Institute of Mountaineering, Uttarkashi) में दाखिला लिया । अपनी आईएएस ( Indian Adminstrative Service) पेपर की तैयारी के साथ साथ उन्होंने ट्रेनिंग भी ली और इस दौरान वो इंडियन माउंटेनियरिंग के हॉस्टल में रहती थी जो की Connought Place New Delhi में था । 1989 में वो नाइन नेशन इंटरनेशनल कैंप का हिस्सा भी रह चुकी है ।

क्या संतोष यादव को माउंटेनियरिंग करने की इजाजत थी ?

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संतोष यादव एक conservative परिवार की थी , जहां लड़कियों को पढ़ने की इजाज़त भी मुश्किल से मिलती थी और वहां संतोष ने उस सोसाइटी की होते हुए उन सभी लोगों से अलग सोचा और अपने सपने को सच भी किया । बचपन से ही संतोष जी ने कुछ अलग करने की ठान रखी थी और अपने परिवार की मरज़ी के खिलाफ उन्होंने माउंटेनियरिंग करने का फैसला किया और वो दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला थी जो शिखर तक पहुँच पायीं । एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि उन्हें मौका मिला नहीं था मगर उन्होंने लिया था क्योंकि वो एक बहुत ही छोटे जिले से है जहां लड़कियों को इतनी आजादी नहीं दी जाती ।

उन्होंने बताया कि जब वो 16 साल की थी उन पर शादी करने का दबाव था पर वो कम से कम ग्रेजुएट होना चाहती थी जिसकी उन्हें इजाज़त न थी इसीलिए उन्हें 3 दिन तक भूखा रहकर अपनी बात को मनवाना पड़ा और ग्रेजुएशन के साथ साथ उन्हें पहाड़ो से आकर्षण हो गया ।
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उपलब्धियां


30 मार्च 2000 को राष्ट्रपति द्वारा संतोष यादव को पद्मा श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया । ये अवार्ड हाईएस्ट सिविलियन अवार्ड है जो कि संतोष को उनकी कामयाबी के लिए राष्रपति भवन में investiture ceremony के दौरान दिया गया
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1989 में पहली बार , संतोष को 9 नेशन इंटरनेशनल क्लाइम्बिंग कैंप कम एक्सपीडिशन जो की nun - kun एरिया की ओर जा रहा था ,से जुड़ने का अवसर मिला और 31 टीम मेंबर्स में वो ही एक महिला सदस्य थी ।
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1991 में उन्हें Indo - Japanese Kanchenjunga Expedition के लिए चुना गया क्योंकि वो एक ताकतवर climber थी ।
Indo - Japanese Kanchenjunga Expedition के बाद , उन्हें एक लीड मेंबर की पोजीशन पर Indian Pre - Everest Expedition के लिए चुना गया ।
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संतोष यादव के बहदुरी भरे किस्से


उन्होंने अपने इंटरव्यू के दौरान कुछ ऐसे बातें कही , जिन्हें हम सबको जानने की आवश्यकता है । उन्होंने अपने सफर का एक किस्सा बताया जिसमें वो कहती है कि साउथ पोल को हाईएस्ट ग्रेवयार्ड भी कहा जाता है , वहां काफी deadbodies पड़ी मिलती है और ऊंचाई के कारण शरीरों को नीचे भी नहीं लाया जा सकता और जहां मेरा टेंट लगाया गया था वहीं पर एक डेडबॉडी पड़ी थी और मैं बिना इस बात को जानते हुए वहां सो गयी और सुबह पता लगा कि मैं एक डेडबॉडी के साथ सोई थी ।"

उन्होंने बताया की कभी भी उनकी सोच मैं ये नहीं था की वो पहाड़ो को करियर की जगह पर चुन रही है , वो हमेशा से नेचर से जुडी रहीं है और अरावली की पहाड़ियों को देखते हुए हर वक्त मुझे ऐसा लगता था की मुझे जा कर देखना चाहिए की वहां क्या होगा , वहां का नज़ारा कैसा होगा ।

जो भी लोग माउंटेनियरिंग करना चाहते हैं , मेरी सलाह उन्हें ये होगी की आप हर वक्त शांत रहें और खासकर क्लाइम्बिंग करते समय क्योंकि उस वक्त सांस फूलना और तनाव से आपकी जान जा सकती है

पढ़िए : अरुणिमा सिन्हा : माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली विकलांग महिला

इंस्पिरेशन Santosh Yadav भारतीय पर्वतारोही संतोष यादव
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