National Safe Motherhood Day: एक मां के लिए अपनी जिम्मेदारियों और पहचान के बीच संतुलन बनाना कितना मुश्किल होता है?

मां बनना बच्चे को जन्म देने से कही बढ़कर है और इसके स्ट्रगल्स के बारे में कोई बात नहीं करता है और उन्हें बहुत ही नॉर्मल माना जाता है। चलिए आज हम इसके बारे में बात करते हैं

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Rajveer Kaur
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National Safe Motherhood Day

Photograph: (Freepik)

National Safe Motherhood Day: हमारे समाज में मां बनने को बहुत आसान और जरूरी समझा जाता है लेकिन हर किसी के लिए यह अनुभव एक जैसा नहीं होता है। इस दौरान एक महिला बहुत सारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलावों में से गुजरती है जिनके बारे में कोई बात ही नहीं करता है। मां बनना बच्चे को जन्म देने से कही बढ़कर है और इसके स्ट्रगल्स के बारे में कोई बात नहीं करता है और उन्हें बहुत ही नॉर्मल माना जाता है। जब एक औरत मां बनती है तो उसके लिए अपनी जिम्मेदारियों और पहचान के बीच में बैलेंस बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है। चलिए आज हम इसके बारे में बात करते हैं

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एक मां के लिए अपनी जिम्मेदारियों और पहचान के बीच संतुलन बनाना कितना मुश्किल होता है?

पहचान में बदलाव

मां बनने के बाद एक औरत की पहचान में धीरे-धीरे बदलाव आने लग जाता है। महिला की सिर्फ एक ही पहचान बनकर रह जाती है जो मां के रूप में है। एक औरत सिर्फ मां नहीं होती है और उसकी पहचान सिर्फ बच्चों को जन्म देने से नहीं जुड़ी होती है। एक औरत मां होने से पहले एक औरत है जिसने अपनी जिंदगी में और भी बहुत कुछ हासिल किया है लेकिन समाज एक औरत के प्रति इस बात को मानता है कि उसने बच्चों को जन्म दिया है जिस कारण कई बार महिला खुद से संतुष्ट नहीं होती है।

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खुद के लिए समय नहीं मिलता 

भारतीय औरतों की सबसे ज्यादा यही शिकायत रहती है कि मां बनने के बाद उन्हें खुद के लिए समय नहीं मिलता है, जैसे उनके ऊपर जिम्मेदारियां का पहाड़ टूट जाता है। समाज की अपेक्षाएं एक मां से बहुत ज्यादा होती हैं। अगर एक मां कई बार बच्चे से दूर होना चाहती है या फिर वो अपने लिए कुछ समय निकालना चाहती है तो उसे सेल्फिश बोल दिया जाता है जबकि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। कई बार मां बच्चे से खुद को अलग करना चाहती है क्योंकि उसकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है या फिर वह कुछ देर अकेले रहना चाहती है लेकिन ऐसी समझ बहुत कम लोगों में होती है।

परिवार को प्राथमिकता देना 

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परिवार को प्राथमिकता देना एक औरत की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बना दिया जाता है उसे बताया जाता है कि मां बनने के बाद अब उसे अपने करियर पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देना है। उसकी जिम्मेदारियां में सिर्फ परिवार शामिल होना चाहिए जैसे बच्चों की देखभाल, पति का ध्यान रखना, सास ससुर की सेवा करना लेकिन इस बीच यह कोई भी नहीं जाना चाहता है कि उसे क्या चाहिए या फिर उसकी क्या ख्वाहिश है। परिवार हमारी प्राथमिकताओं में से एक हो सकता है लेकिन किसी भी व्यक्ति के लिए परिवार सब कुछ नहीं होता है। उसकी अपनी भी एक पहचान होती है। सबसे पहले उसे खुद को इतना समय देना होता है कि उसे जिंदगी में कोई रिग्रेट या गिल्ट नहीं होना चाहिए।

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