Patriarchal Thinking: खाना बनाना और परोसना औरतों की ज़िम्मेदारी?

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Rajveer Kaur
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पित्तरसत्ता सोच ने आज भी हमारे दिलों में घर किया हुआ यह व्यापक रूप से जहरीली बीमारी है जो समाज में मौजूद है, कभी-कभी स्पष्ट और कभी-कभी छिपे हुए रूपों में।इस सोच ने आज भी लोगों के मन में घर किया हुआ है।इसमें जेंडर के आधार पर काम निश्चित किए हुए है और उनको इसी के हिसाब से काम करने पढ़ेंगे। जैसे औरतों को घर के काम करने है, आधी रात को बाहर नहीं जाना, शादी करना और अपने पति की बात मानना आदि जैसे घरों में लड़कियों को छोटी उम्र से काम सिखाना शुरू कर दिया जाता है लेकिन लड़कों को नहीं सिखाया जाता है। लड़की के इसे सीखना ज़रूरी है कहा जाता है कि यह लड़कियों की ड्यूटी है कि वह खाना बनाए और परोसें।

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पुरुष को परोसना औरत की ज़िम्मेवारी?

हमारे घरों में यह पित्तरसत्ता सोच आज भी क़ायम है कि औरत को ज़िम्मेवारी पहले वह सब को खिलाएँगी फिर आप खाएगी। यह सोच एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से आगे जा रही है।इस चीज़ से घरों में लैंगिक असमानता बड़ती है।बच्चों में फ़ासला बड़ता है। घर में जब ऐसा व्यवहार होगा तो लड़कों को  लगेगा खाना बनाना और खिलाना औरत की ज़िम्मेदारी है।

घर में अक्सर माएँ हमेशा अपनी बेटियों को कहती है कि बेटी अपने भाई खाने परोस दो लेकिन कभी उन्होंने यह कहा है बेटी अपनी बहन को खाना परोस दो, नहीं क्योंकि आज भी यह समझा जाता खाना परोसना तो औरतों का काम हैं।

लड़कियों को यह सोच बन जाती है

जब घर में शुरू से उन्हें सिखाया जाता है कि तुम्हारा काम है घर के मर्दों को सर्व करना ऐसे फिर उनकी भी सोच बन जाती है कि हमारा काम है मर्दों को ख़िदमत हमें ही करनी है। जिससे यह औरतों के मन में अपने आप के लिए एक हीनता आ जाती है।जिसे खतम करना मुश्किल हो जाता है।

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एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जा रही है यह पित्तरसत्ता सोच-

यह पित्तरात्मक सोच एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जा रही है। ऐसे यह ख़त्म नहीं हो रही है। जब तक घर पर हम ऐसी सोच नहीं बदलगे तब तक यह बदलाव नहीं आएगा।इसलिए पहले हमें घर पर ऐसी सोच बदलने की ज़रूरत है। जिससे इस को खतम किया जा सकता है नहीं तो यह ऐसे ही चलती जाएगी और बदलाव नहीं आएगा।

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