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हमारे समाज की इस स्थिति को अच्छे से समझने के लिए और इन मुद्दों पर उनकी सोच जानने के लिए शीदपीपल ने बात की लीज़ा मंगलदास से। लीज़ा मंगलदास Sex-Positive Influencers है ,जो अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स के ज़रिये भारतीयों को सेक्स के प्रति जागरुक करती है।
सेक्सशुअल बॉडी पार्ट्स के बारे में बात करने पर "Shame Shame" क्यों ?
लीज़ा ने बताया कि "इंडिया में 'सेक्स' एक ऐसी चीज़ है जो हम प्रिटेंड करते है कि हम खुद नहीं करते सिर्फ दूसरे लोग करते है।हमे बचपन से ही सेक्सशुअल पार्ट्स के बारे में ठीक से बताया नहीं जाता। जब हम 3 -4 साल के बच्चे को बॉडी पार्ट्स के बारे में बताते है ,ये आपकी नाक है,ये कान है ,ये मुँह है ,लेकिन वो… 'shame shame' है , इसके बारे में नहीं पूछते।प्राइवेट पार्ट्स को 'नुन्नू ,पुच्चू' जैसे नामों से बुलाते है, उनको असली नाम नहीं बताते। ऐसा कर के हम उन्हें ये बताना चाहते कि आपके शरीर के इस अंग के बारे में बात नहीं करनी चाहिए।"
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बॉलीवुड फिल्मो की 'No means Yes' जैसी लाइने Consent की अहमियत को घटा देती है :
"Consent (सहमति) एक बहुत ही बेसिक चीज़ है ,जिसे अगर हर कोई समझ जाये तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं होगी ,लेकिन इसे हमारे समाज ने ही कम्प्लीकेटेड बनाया है। बॉलीवुड फिल्मो की 'No Means Yes' जैसी लाइने Consent की अहमियत को घटा देती है। इन कारणों से सेक्सशुअल वॉयलेंस, यौन शोषण (Sexual harassment) जैसी समस्याएं बढ़ती ही जा रही है। एक महिला होने के नाते हमे अपनी सेक्सशुअल एक्सपीरियंस (sexual experience) का तरीका चुनने का अधिकार है।"- लीज़ा मंगलदास।
मीडिया ने female orgasm को हमेशा से डिमोटिवेट किया है :
लीज़ा ने मीडिया को female orgasm को गलत तरीके से रिप्रेजेंट करने के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा "मुझे लगता है मीडिया ऐसा शो करता है कि female orgasm बहुत मुश्किल है ,आपका pleasure मुश्किल है , ट्रिकी है ,कॉम्प्लिकेटेड है , इसमें बहुत टाइम लगता है , कुछ एक्सपेक्ट मत करो , लेकिन असलियत में ये इतना मुश्किल नहीं है जितना मीडिया ने हमे आजतक दिखाया है। female orgasm को इतना कॉम्प्लिकेटेड और मुश्किल शो कर के हम फीमेल प्लेजर ,उनकी सेटिस्फैक्शन पाने की इच्छा को कही न कही डिमोटिवेट करते है। आपका प्लेजर ,आपकी ख़ुशी कोई और तय नहीं करता ,आप तय करते हो इसलिए दूसरों की मत सुनिए और खुदकी ख़ुशी का ध्यान रखे।"
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