Toxic Masculinity: कुछ समय से टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी का ज़िक्र अकसर सुनने में आ रहा है। ये समाज में व्याप्त एक तरह की सामाजिक प्रथा-सी है जो बुराई लिए हुई है। इससे न केवल पुरुषों को समस्या होती है बल्कि ये पूरी सोसाइटी के लिए ख़तरा बन जाती है। टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी एक पहले सी चली आ रही प्रथा है जिसके तहत एक पुरुष अपनी शक्ति और महानता का प्रदर्शन हिंसा, दंभ और नियंत्रण के बल पर करता है। इसमें एक पुरुष अपने को श्रेष्ठ समझता हुआ हर चीज़ पर अपना अधिकार-सा जमाता है। 2019 में कियारा आडवानी और शाहिद कपूर की फ़िल्म कबीर सिंह पर इस तरह के आरोप लगे थे कि ये टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी को प्रेरणा देती है। आरोप था कि इसमें दिखाए टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी जैसे चरित्र के बल पर ही ये हिट साबित हुई।
टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के समाज में प्रभाव
टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से सामाज में बहुत-सी बुराई संचारित होती है। इसमें शामिल है :-
- घरेलू हिंसा : टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी महिलाओं के प्रति एक बहुत बड़ा ख़तरा होती है। जब घर के पुरुष इस टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से पीड़ित होते हैं तो पूरा परिवार का सुख ख़त्म हो जाता है। इससे घरेलू हिंसा बढ़ती है, कारण पुरुष का घर पर कंट्रोल। महिलाओं के साथ दंभ और हिंसा घरेलू हिंसा को जन्म देती है।
- सामाजिक बहिष्कार : टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से पीड़ित पुरुष घर ही नहीं समाज के लिए भी असम्मानीय हो जाते हैं। समाज उनका बहिष्कार कर देता है। बहुत से शोध में ऐसा साबित हुआ है कि टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से पीड़ित पुरुष आईसोलेशन जैसी समस्याओं के घेरे में आ गए।
- सुसाइड : ऐसा भी सामने आया है कि टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से पुरुष क्योंकि ख़ुद ही कई तरह की मानसिक परेशानियों से जूझ रहे होते हैं, समाज उनका पहले ही बहिष्कार कर चुका होता है, ऐसे में सुसाइड बढ़ जाते हैं। सुसाइड के सिवा उनके पास और कोई ऑप्शन नहीं रह जाता।
- सामाजिक बुराईयां : टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से पीड़ित लोग अपनी समस्याएं दूसरों से नहीं कह पाते। इससे उनको अपनी पॉवर पर ख़तरा महसूस होता है। ऐसे में वो शराब और अन्य नशीलें पदार्थों का सेवन शुरु कर देते हैं। इससे उन्हें राहत महसूस होती है।
- क्राइम : टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से जुड़े पुरुष अपने को स्थापित करने के लिए अच्छी बात को भी बुरा साबित करने, पितृसत्तामक रवैये के चलते बहुत से क्राइम कर देते हैं। वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइज़ेशन की एक रिपोर्ट की माने तो 38 फ़ीसदी हर महिला जिसकी हत्या हुई थी, टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से पीड़ित उसके साथी से हुई थी।
टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के पीछे समाज भी ज़िम्मेदार है। महिला और पुरुषों में भेदभाव इसका मुख्य कारण है। पुरुष ऐसा नहीं करते, पुरुष रोते नहीं, पुरुषों को अपनी समस्याएं नहीं बतानी होती हैं आदि समाज के विचार पुरुषों को धीरे-धीरे टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी की ओर धकेल देते हैं। इसकी शुरुआत परिवार से बचपन से हो जाती है। ऐसे में ज़रूरी है परिवार में बच्चों को बचपन से भेदभाव रहित महौल दिया जाए।