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Why is every successful girl called 'arrogant'?: यह एक समाज ही है जहां लड़कियों को आगे बढ़ने पर, खुद पर गर्व करने पर और आत्मविश्वास होने पर, उसपर गर्व करने के बजाए उसे प्रेरणा का उदाहरण बनाने के बजाए उसे घमंडी का टैग दे दिया जाता है। क्या ये समाज कभी लड़कियों के लिए अपना नज़रिया बदलेगा? या लड़कियों को ऐसे ही हर बार अपने सपनों और करियर के लिए समाज से लड़ना होगा?
Women vs world: क्यों हर सक्सेसफुल लड़की को 'घमंडी' कह दिया जाता है?
सफलता की परिभाषा क्या है, एक लड़की और समाज के लिए
सफलता यानी खुद के लिए कुछ सही करना और समाज से आगे बढ़कर करना, अपने दम पर एक ऐसा नाम और पहचान बनाना जो उसे किसी रिश्तेदार से या समाज से ना मिला हो बल्कि खुद के काबिलियत और अपने दम पर मिला हो जिससे एक लड़की को आत्मविश्वास मिले, खुद पर भरोसा हो, जिससे वह अपने लिए और अपने परिवार के लिए कुछ बेहतर कर सके, सफलता है। लेकिन सफलता की ये परिभाषा एक लड़की के लिए समाज को हजम नहीं होती, समाज ने लड़कियों के लिए सफलता की एक अलग परिभाषा बनाई है, जिसमें लड़कियां सिर्फ अपने परिवार के की अनुसार चले, शादी करे, बच्चे पैदा करने के बाद बच्चों का, अपने पति का और घर वालों का ध्यान रखे। समाज में समाज के अनुसार बोले, और इन सब के बीच खुद को भूल जाए।
एक लड़की की सफलता पर समाज की धारणा
समाज के लिए लड़ियों के कई रूप है, जैसे मां, बेटी, बहन, पत्नी, या कहें देवी भी। लेकिन क्या ये समाज एक स्त्री एक लड़की को अपनी एक अलग पहचान बनाने देता है? या ये स्वीकार कर सकता है कि एक लड़की समाज के दिए नाम पहचान के अलावा, अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हो जाए? तो इसका जवाब है ‘नहीं’ क्योंकि समाज एक स्त्री को एक लड़की को आगे बढ़ता नहीं देख सकता खासकर तब, जब ये पहचान और सफलता उसने अपने दम पर अपनी काबिलियत के बल पर पाई हो।
लड़की की सफलता में आने वाली रुकावटें
जब एक लड़की अपने घर परिवार और समाज के बनाए नियमों के अनुसार चलती है, वे लड़की तब तक ही, संस्कारी, अच्छी, गुणवान, और मीठे स्वभाव की होती है। लेकिन जब वही लड़की अपने भले के लिए, अपने करियर या अपने सपनों को पाने के लिए, घर में या समाज में अपनी बात को रखती है, या लड़ पड़ती है, तब वही लड़की घर परिवार के लिए बुराई और घमंड का उदाहरण बन जाती है, साथ ही समाज के लिए वे असंस्कारी, चालाक और घमंडी बन जाती है।
क्या नए समय में भी लड़कियों की सफलता को लेकर ये धारणाएं है?
नए समय में काफी कुछ बदला है। सफ़लता का नजरिया, परिभाषा और तरीका भी। अब के समय में लड़कियां बहुत आगे बढ़ रही है चाहे वो अफसरी हो या कोई छोटी सी दुकान की बागडोर, एक स्त्री घर से बाहर तक के काम को अच्छे से निभा रही है लेकिन समाज और समाज का नजरिया एक स्त्री के लिए कभी नहीं बदलता। अभी भी जब घर के काम, बच्चों को संभालना, बूढ़े बाबा दादी की देखभाल, रसोई में मां का हाथ बटाना, इन सब के बीच कोई लड़की, स्त्री अपने लिए भी कुछ करना चाहे तो समाज इस बात को क्यों नहीं स्वीकार सकता, क्यों इस बात से कतराता है।