Happy Birthday Madhuri Dixit: मधुरी दीक्षित सिनेमा जगत की एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है। उनके अभिनय, नृत्य, शालीनता और आभा से कोई भी साधारण सी स्क्रिप्ट भी यादगार बन जाती है। चाहे हालिया वेब सीरीज़ 'द फेम गेम' हो या फिर उनके 90 के दशक की सुपरहिट फ़िल्में, उन्होंने हर किरदार को बखूबी निभाया है। उनके जन्मदिन के खास मौके पर आइए एक नज़र डालते हैं उनके कुछ ऐसे दमदार किरदारों पर, जिन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।
मधुरी का दमदार अभिनय
द फेम गेम (The Fame Game)
नेटफ्लिक्स की इस सीरीज़ में मधुरी दीक्षित ने अनामिका आनंद का किरदार निभाया है, जो एक चमचमाती फ़िल्मी सितारा है। पर्दे पर उनके आदर्श परिवार और ज़िंदगी के राज़ खुलने के बाद शुरू होने वाले उतार-चढ़ाव भरे सफर में मधुरी का अभिनय लाजवाब है।
बेटा (Beta)
मधुरी दीक्षित की दमदार फिल्मों में से एक 'बेटा' को दर्शकों और समीक्षकों का भरपूर प्यार मिला। 1992 की इस फिल्म में उन्होंने एक पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की का किरदार निभाया है, जो एक अनपढ़ लड़के से प्यार कर लेती है और उससे शादी कर लेती है। शादी के बाद ससुराल पहुंचने पर उसे अपनी सास की चालबाज़ी का सामना करना पड़ता है और वह अपने पति को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करती है। इस फिल्म के गाने भी खूब सुपरहिट हुए थे, जिनमें से "धक धक करने लगा" आज भी लोगों को झूमने पर मजबूर कर देता है।
लज्जा (Lajja)
2001 में आई फ़िल्म 'लज्जा' महिलाओं के संघर्षों और सामाजिक बंधनों पर ज़ोर देती है। फ़िल्म में रेखा, माधुरी दीक्षित और मनीषा कोइराला जैसी मजबूत अभिनेत्रियों का जमघट है। मधुरी ने जंकी नाम की एक स्वतंत्र थिएटर कलाकार का किरदार निभाया है, जो अपने सह-कलाकार से प्यार करती है। जंकी शादी से पहले गर्भवती हो जाती है, लेकिन उसे समाज की परवाह नहीं होती। हालांकि, बाद में उस पर आरोप लगता है कि बच्चा उसके प्रेमी का नहीं है और उसका प्रेमी भी उसका साथ छोड़ देता है।
हम आपके हैं कौन (Hum Aapke Hain Koun)
सूरज बड़जात्या की इस पारिवारिक फ़िल्म को कौन नहीं जानता? सलमान खान और मधुरी दीक्षित की मुख्य भूमिका वाली यह फ़िल्म आज भी दर्शकों को पसंद आती है। मधुरी ने निशा नाम की एक चुलबुली लड़की का किरदार निभाया है, जिसे लोगों को चिढ़ाना बहुत पसंद है। वह अपनी बहन के देवर से प्यार कर बैठती है और फिर शुरू होती है प्यार की एक प्यारी सी कहानी, जिसमें कई उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन अंत में प्रेमी जोड़े मिल जाते हैं। इस फ़िल्म का ड्रामा, गाने, शादी, कुत्ता और खेल आज भी लोगों की यादों में ताज़ा हैं।
गुलाब गैंग (Gulaab Gang)
मधुरी दीक्षित और जूही चावला अभिनीत यह फ़िल्म भी महिला सशक्तिकरण पर आधारित है। मधुरी ने गुलाब गैंग नामक महिला कार्यकर्ताओं के समूह की निडर नेता रज्जो का किरदार निभाया है, जो समाज की कुरीतियों जैसे महिला शिक्षा की कमी, घरेलू हिंसा, बलात्कार, दहेज प्रथा आदि के खिलाफ लड़ती हैं। रज्जो का सामना एक स्थानीय भ्रष्ट राजनीतिज्ञ सुमित्रा से होता है, जो गुलाब गैंग को खत्म करना चाहती है। रज्जो महिला शिक्षा और सशक्तीकरण के लिए काम करती हैं और वंचित लड़कियों के लिए स्कूल खोलने का लक्ष्य रखती हैं, जिसके लिए वह चुनाव भी लड़ती हैं।
कोयला (Koyla)
मधुरी दीक्षित की एक और सराहनीय फिल्म 'कोयला' में उन्होंने गौरी नाम की एक गांव की लड़की का किरदार निभाया है, जिसे धोखे से एक गुंडे से शादी करवा दी जाती है। शादी के बाद उसे कैद कर के रखा जाता है और उस पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं। वह अपने ताक़तवर पति से आज़ादी पाने और अपने प्रेमी के साथ भागने का फैसला करती है। भागते समय उसे कई खतरों का सामना करना पड़ता है, उसे एक कोठे पर भी बेच दिया जाता है, लेकिन वह वहां से भी भाग निकलने में कामयाब हो जाती है। अंत में वह अपने प्रेमी से मिल जाती है और मिलकर अपने पति को मार देती है।
देवदास (Devdas)
सारत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित इस बॉलीवुड की सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों में से एक 'देवदास' में मधुरी दीक्षित ने चंद्रमुखी का किरदार निभाया है, जो एक कोठेवाली है और दिल की बहुत अच्छी है। मधुरी ने कोठेवाली के किरदार को बड़े ही शानदार ढंग से निभाया है, साथ ही "माँर डाला" और "डोला रे डोला" जैसे गानों में अपने शानदार नृत्य का जलवा बिखेरा है। सिनेमा जगत में सबसे प्रशंसित प्रदर्शनों में से एक के रूप में मधुरी की चंद्रमुखी हमेशा याद की जाएंगी।
मृत्युदंड (Mrityudand)
1997 की फ़िल्म 'मृत्युदंड' मधुरी दीक्षित की एक और दमदार फिल्म मानी जाती है, जिसमें उन्होंने एक निडर, मजबूत और स्वतंत्र महिला का किरदार निभाया है। यह फ़िल्म बिहार में लैंगिक असमानता और सामाजिक समस्याओं पर आधारित है और एक ऐसे जोड़े की कहानी है जो समाज के दमन और बुराइयों के खिलाफ लड़ने की कोशिश करते हैं। मधुरी का किरदार केतकी अपने प्यार और पति को खो देती है, जिसके बाद वह बदला लेने के लिए निकल पड़ती है और पुरुष प्रधान समाज से लड़ती है।