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भारत जैसे देश में जहां बेटियों की शिक्षा, करियर और स्वतंत्रता पर बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन आज भी कई परिवारों में एक ही सवाल सपनों के रास्ते में खड़ा रहता है "लोग क्या कहेंगे?" यह मानसिकता न सिर्फ आत्मनिर्भरता को कुचलती है, बल्कि बेटियों को उनकी काबिलियत पर शक करने पर मजबूर कर देती है।
इसे ही हम कहते हैं Toxic Society Syndrome, यानी वह सामाजिक सोच जो औरत के हर फैसले पर उंगली उठाती है, चाहे वह कपड़ों से जुड़ा हो, करियर से या फिर निजी ज़िंदगी से। आज हम तीन ऐसी लड़कियों की कहानियों के ज़रिए इस सोच को आइना दिखाने जा रहे हैं, जिन्होंने इस टॉक्सिक सिंड्रोम से निकलकर अपनी पहचान बनाई।
जब ‘Log Kya Kahenge’ बन जाए हर सपने का दुश्मन
1. आयुषी: जब पत्रकारिता से ज़्यादा रिश्ते की चिंता हो जाए
दिल्ली की रिया बचपन से पत्रकार बनना चाहती थी। उसने मीडिया स्टडीज़ में एडमिशन लिया, लेकिन मोहल्ले की आंटियों से लेकर घर के बुजुर्गों तक सबका यही सवाल था "अरे लड़की होकर पत्रकारिता? कौन करेगा इससे शादी?"
आयुषी ने इन बातों को नजरअंदाज़ करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की, इंटर्नशिप की, और आज एक प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल में सीनियर रिपोर्टर है। वही लोग जो उसे रोकते थे, आज उसके काम पर तालियां बजाते हैं।
2. श्रद्धा: रात को काम करने वाली लड़की, चरित्र पर सवाल उठाना आसान है
श्रद्धा थिएटर आर्टिस्ट है। उसके शो अक्सर रात को होते हैं। जब उसने देर रात सफर करना शुरू किया तो सोसाइटी के कुछ लोगों ने ताने देने शुरू कर दिए
"लड़की होकर इतना घूमती है? संस्कार नहीं हैं क्या?"
लेकिन श्रद्धा ने जवाब देने के बजाय अपनी कला में सुधार किया। आज वह न सिर्फ स्टेज पर, बल्कि राष्ट्रीय रंगमंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है।
3. राशिका: शादी के बाद नौकरी? समाज को कब मंज़ूर हुई महिलाओं की आज़ादी
पूजा एक बैंक में अधिकारी थी। शादी के बाद उसके ससुराल में साफ कह दिया गया "अब नौकरी की ज़रूरत नहीं, घर देखो।"
पूजा ने संयम और समझदारी से अपने ससुराल वालों को समझाया कि नौकरी उसके लिए सिर्फ पैसा कमाने का जरिया नहीं, बल्कि उसकी पहचान है। कुछ समय बाद परिवार ने भी उसकी लगन को समझा और आज पूजा घर और ऑफिस दोनों को बखूबी संभाल रही है।
समस्या सिर्फ सोच की है, काबिलियत की नहीं
इन तीन कहानियों में एक बात कॉमन है हर लड़की को समाज ने रोका, टोका, परखा। लेकिन फर्क तब पड़ा जब उन्होंने समाज की सोच से ज़्यादा अपने विश्वास को तवज्जो दी। Toxic Society Syndrome असल में हमारी सोच का रोग है, जो पीढ़ियों से चलता आ रहा है। औरत अगर देर रात बाहर जाए तो चरित्र पर शक, करियर बनाए तो रिश्ते पर शक, बोल दे तो संस्कार पर सवाल।
बदलाव तभी आएगा जब हम डरना छोड़ेंगे
हर बार जब कोई लड़की अपने लिए खड़ी होती है, वह सिर्फ अपना नहीं, बल्कि पूरे समाज का नजरिया बदलने का बीड़ा उठाती है। Toxic Society Syndrome का इलाज सिर्फ एक है बेटियों पर भरोसा और समाज को शिक्षित करना। आज ज़रूरत है इस सोच को बदलने की, और यह बदलाव हर उस लड़की से शुरू होता है जो कहती है: "मैं करूंगी वही, जो मुझे सही लगे बाकी लोग क्या कहेंगे, वो उनकी चिंता है।"