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Photograph: (stenzelclinical)
Why is everyone trying to be someone else: आजकल के समय में ये बात अक्सर देखने को मिलती है कि लोग खुद के असली रूप से ज़्यादा, किसी और की तरह बनने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया, फिल्में, और आसपास का माहौल हमें लगातार एक ऐसा चेहरा दिखाते हैं जो परफेक्ट लगता है लेकिन क्या वाकई वो ज़रूरी है? अक्सर हम अपनी पहचान को छोड़कर, उस भीड़ में शामिल होना चाहते हैं जहाँ सब एक जैसे दिखने और सोचने की कोशिश कर रहे हैं।
इस सोच की शुरुआत बहुत छोटी उम्र से हो जाती है, जब हम दूसरों से तुलना करना शुरू करते हैं कोई ज़्यादा सुंदर है, कोई ज़्यादा सफल है, किसी की ज़िंदगी ज़्यादा चमकदार दिखती है। धीरे-धीरे हम भी वैसा ही दिखना और जीना चाहते हैं। लेकिन इस कोशिश में हम अपनी असली पहचान और आत्मविश्वास को खोने लगते हैं।
हर कोई किसी और जैसा बनने की कोशिश क्यों कर रहा है?
आज के दौर में अगर आप आसपास नज़र डालें, तो आपको कई लोग मिलेंगे जो खुद को किसी और की तरह दिखाने या बनने की कोशिश कर रहे हैं। ये बात केवल सोशल मीडिया पर ही नहीं, बल्कि हमारे घर, ऑफिस, रिश्तेदारों और यहां तक कि स्कूल के बच्चों तक में दिखाई देती है। ऐसा लगता है जैसे अपनी पहचान को भूल जाना एक चलन बन गया है।
हर परिवार में कभी न कभी ये बात उठती है देखो, फलां का बेटा इतना अच्छा कर रहा है, वो लड़की कितनी स्मार्ट दिखती है, या वो इंस्टाग्राम पर कितनी फेमस है, हमें भी वैसा कुछ करना चाहिए। धीरे-धीरे ये बातें हमारे मन में घर कर लेती हैं और हम खुद को ही कम आंकने लगते हैं। ये सोच बन जाती है कि जब तक हम दूसरों की तरह नहीं बनेंगे, तब तक हमें कोई पसंद नहीं करेगा, ना ही हमारी कदर होगी।
इस वजह से लोग अपने कपड़े, बोलचाल, रहन-सहन और यहां तक कि अपने विचार भी दूसरों से मिलाने की कोशिश करते हैं। असल में, समाज हमें ये महसूस कराता है कि अगर आप थोड़े अलग हैं, तो आप 'सामान्य' नहीं हैं। यही वजह है कि बहुत से लोग अपने मन की बातें दबा देते हैं और बाहरी दुनिया के हिसाब से जीने लगते हैं। वो सोचते हैं कि अगर मैं जैसा हूं वैसा रहा, तो शायद लोग मुझे स्वीकार नहीं करेंगे।
लेकिन इस कोशिश में जो सबसे ज़्यादा नुकसान होता है, वो खुद के आत्म-सम्मान का होता है। जब आप हर दिन खुद से दूर होते जाते हैं, तो अंदर ही अंदर एक खालीपन बनने लगता है। आप दूसरों को खुश करने की कोशिश में खुद को भूल जाते हैं। ऐसा नहीं है कि खुद में बदलाव लाना गलत है, लेकिन वो बदलाव अगर अपनी खुशी और आत्मविश्वास के लिए हो, तो ही सही मायनों में असरदार होता है।
असल सवाल यही है क्या हम खुद को वैसे ही स्वीकार कर सकते हैं जैसे हम हैं? क्योंकि जब तक हम खुद को नहीं अपनाएंगे, तब तक हमें किसी और की तरह बनने की ज़रूरत बार-बार महसूस होती रहेगी। समाज की सोच धीरे-धीरे बदलेगी, लेकिन इसकी शुरुआत हमें खुद से करनी होगी।