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Movies That Inspire: सांड की आंख: जब बॉलीवुड ने बताया कि उम्र कोई रुकावट नहीं

सांड की आंख सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है! जानिए चंद्रो और प्रकाशी तोमर की सच्ची कहानी, जिन्होंने 60 की उम्र में शूटिंग सीखकर समाज की सोच को बदल दिया। क्या उम्र सच में सिर्फ एक नंबर है?

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Sakshi Rai
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saand ki aankh

Photograph: (youtube)

Saand Ki Aankh – Is Age Just a Number?: भारतीय समाज में महिलाओं की ज़िंदगी हमेशा से एक तय दायरे में बंधी रही है। शादी, बच्चे, घर-गृहस्थी - इन ज़िम्मेदारियों के बीच उनकी खुद की पहचान कहीं न कहीं खो जाती है। अगर कोई महिला 40-50 की उम्र पार कर ले, तो लोगों की सोच यही होती है कि अब उसके सीखने, कुछ नया करने, या खुद के सपने पूरे करने का समय खत्म हो गया है। घर की बहुएँ और बेटियाँ अपनी इच्छाओं को पीछे छोड़कर सिर्फ परिवार की खुशियों में खुद को ढाल लेती हैं।

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सांड की आंख-क्या उम्र सिर्फ एक नंबर है?

ऐसे में "सांड की आंख" जैसी फिल्म एक नया नजरिया देती है, जो बताती है कि अगर हौसला हो, तो उम्र कभी भी किसी की राह में रोड़ा नहीं बन सकती। यह फिल्म चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की सच्ची कहानी पर आधारित है, जो हरियाणा के छोटे से गाँव की दो बुजुर्ग महिलाएँ हैं। ज़िंदगीभर घरेलू जिम्मेदारियों में उलझी रहने वाली ये महिलाएँ जब 60 की उम्र में शूटिंग सीखना शुरू करती हैं, तो उनके परिवार और समाज के लिए यह किसी अजूबे से कम नहीं होता।

परिवार का दबाव और समाज की सोच

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हमारे समाज में आमतौर पर जब कोई महिला अपने 50-60 की उम्र में कुछ नया करने की कोशिश करती है, तो सबसे पहले परिवार और समाज ही उसे रोकने की कोशिश करता है। "अब इस उम्र में ये सब क्यों?", "लोग क्या कहेंगे?", "अब आराम करो, बच्चों की देखभाल करो" - ऐसी बातें हर महिला ने कभी न कभी जरूर सुनी होंगी। चंद्रो और प्रकाशी तोमर के साथ भी ऐसा ही हुआ। उनके घर के पुरुषों को यह पसंद नहीं था कि वे घर से बाहर जाकर शूटिंग सीखें। समाज को भी यह नया बदलाव हजम नहीं हुआ।

हौसले की जीत

लेकिन जब हौसला मजबूत हो, तो कोई भी दीवार बड़ी नहीं होती। बिना किसी सपोर्ट के इन दोनों महिलाओं ने अपने दम पर प्रैक्टिस जारी रखी और धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज़ बन गईं। उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी उन्होंने इतनी सफलता हासिल की, कि वे देशभर में प्रेरणा का स्रोत बन गईं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि सपनों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती।

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महिलाओं के लिए सीख

इस फिल्म की सबसे खास बात यह है कि यह हर महिला को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि "क्या सच में उम्र हमें रोक सकती है?" अगर चंद्रो और प्रकाशी तोमर 60 की उम्र में नई शुरुआत कर सकती हैं, तो किसी भी महिला के लिए कभी भी देर नहीं होती।

  • अगर आपके अंदर कुछ सीखने की ललक है, तो समाज की परवाह किए बिना आगे बढ़ें।
  • उम्र सिर्फ एक नंबर है, असली ताकत हौसले और मेहनत में होती है।
  • परिवार और समाज भले ही आपको रोकने की कोशिश करें, लेकिन खुद पर भरोसा रखिए।
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"सांड की आंख" सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उन सभी महिलाओं के लिए एक संदेश है जो अपने सपनों को उम्र के बहाने से रोक देती हैं।

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