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आराम हराम नहीं, ज़रूरी है !

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Swati Bundela
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"आलस से बड़ा शत्रु कोई नहीं होता" ये हिंदी का प्रसिद्ध उद्धरण है जो स्कूल के एग्जाम्स से लेकर करियर की ऊँचाई पर जाने तक बोला जाता है। पर क्या आराम करना सच में इतना बुरा है? क्या इंसान के शरीर और दिमाग को आराम की ज़रूरत नहीं पड़ती? बिल्कुल पड़ती है। इंसान मशीन की तरह काम नहीं कर सकता, उसे रेस्ट चाहिए, पीस चाहिए और भला इतना काम करने का क्या फ़ायदा अगर दो मिनट चैन से बैठने का भी समय न मिले। ज़िंदगी को रेस की तरह जीने में हम अपनी साँसें महसूस करना ही भूलते जा रहे हैं। ओवरवर्क करते करते हम चिढ़ चिढ़े भी हो जाते हैं और ज़िंदगी से रस ही खत्म होने लगता है।

क्या रेस्ट में भी जेंडर डिसपैरिटी है?

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जी हाँ। जेंडर डिसपैरिटी हर जगह मौजूद है, फ़िर भला रेस्ट कैसे अछूता रह जाए। नौकरी फ़िर भी 9-5 में खत्म हो सकती है लेकिन महिलाओं का अनपेड वर्क कभी खत्म नहीं होता। वे सुबह 7 बजे भी काम करती हैं और रात के 12 बजे भी। जिसने जब जो फ़रमाइश की उसे पूरा करते-करते पूरा समय निकल जाता है इसलिए रेस्ट का स्कोप महिलाओं के लिए और भी कम होता है। गार्डियन में छपा एक आर्टिकल "जॉब आपकी जान ले सकती है" में बताया गया है कि अगर आप एक हफ़्ते में 39 घंटों से ज़्यादा समय तक काम करते हैं तो आपकी हेल्थ को भारी नुकसान हो सकता है यहाँ तक कि आपकी जान भी जा सकती है पर महिलाएँ तो रोज़ाना इतना काम करती हैं और ये सच में उनकी हेल्थ को निगेटिवली एफेक्ट करता है।

कई स्टडीज़ में ये पाया गया है कि महिलाओं को नौकरी के दौरान पुरुषों से ज़्यादा स्ट्रेस होता है क्योंकि उन्हें घर जाकर भी आराम नसीब नहीं होता। सुबह नौकरी पर जाने से पहले ज़्यादातर महिलाएँ घर के काम निबटाती हैं, बच्चों को स्कूल ड्रॉप करती हैं और लौटने के बाद भी उनका काम खत्म नहीं होता। खाना बनाना और बुज़ुर्गों का ध्यान रखने जैसे काम, महिलाओं के सर पर ही आते हैं। इसलिए काम काजी महिलाओं के बीमार होने के चांसेस ज़्यादा होते हैं और सबसे बड़ी समस्या ये है कि महिलाओं के काम को काम समझा नहीं जाता, अगर वे घर पर रहती हैं तो ये मान लिया जाता है कि उन्हें ज़्यादा आराम मिल रहा है जबकि तथ्य इसके विपरीत है। इस तरह से "आराम" भी पुरुषों को महिलाओं से तो ज़्यादा ही मिलता है।
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क्या सक्सेसफ़ुल होने का एक ही पैमाना है?


सक्सेस सब्जेक्टिव है। किसी के लिए दुनिया का सबसे अमीर इंसान बनना सक्सेस है तो किसी के लिए परिवार के साथ बैठ कर मूवी देखना इसलिए सक्सेसफुल होने की रिजिड परिभाषा से बाहर निकल कर अपने लाइफ में सक्सेस का मतलब खोजिये। और इस बात का ध्यान रखिये कि आपकी सक्सेस आपकी खुशी का कारण बने, फ्रस्ट्रेशन का नहीं और आपको ख़ुद के लिए समय मिल सके क्योंकि ख़ुद के साथ बिताया हुआ समय सबसे ज़्यादा प्रोडक्टिव होता है।
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रेस्ट करना ज़रूरी क्यों है?


रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग ज़्यादा रेस्ट करते हैं, उनका ब्लड प्रेशर और कॉलेस्ट्रॉल लेवल कम रहता है। ऐसे लोगों को हार्ट की बीमारी भी कम होती है। दिमाग़ को तरों ताज़ा रखने के लिए और काम में ज़्यादा प्रोडक्टिव होने के लिए भी रेस्ट ज़रूरी है। और रेस्ट में सिर्फ़ नींद लेना नहीं आता। नींद तो ज़रूरी है ही, पर इसके अलावा दोस्तों के साथ वक़्त बिताना, बच्चों के साथ खेलना, अपनी हॉबीज़ एक्सप्लोर या छत पर लेटकर तारे देखना भी ज़रूरी है। आराम करना लेज़ीनेस नहीं है, इंसान की बेसिक नीड है। हर किसी को ख़ुद के लिए थोड़ा समय चाहिए ताकि ज़िंदगी जॉब की नीड्स सैटिसफ़ाय करने में ही खत्म न हो जाए। हम अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, दूसरों से आगे बढ़ने के लिए काम करते हैं लेकिन इस चक्कर में हमारी सबसे बड़ी ज़रूरते ही किनारे हो जाती है, 'आराम' और 'मन की शांति'।
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रेस्ट आपको कमज़ोर नहीं बनाता। आपकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ को मेनटेन करता है। आपको हमेशा ख़ुद से ज़्यादा काम करने वाला व्यक्ति मिलेगा ही, इसलिए रेस लगाना छोड़िये और ज़िंदगी को थोड़ा आराम दीजिये। भाग दौड़ से अलग, खुद को एकांत दीजिये।
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सेहत aaram ke fayde
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