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1. सबके सामने पितृसत्ता पर बात करना
जीतने पुराने समय से हमारे यहाँ, धर्मों का चलन है। ठीक उतनी ही पुरानी है – पितृसत्ता ।
पितृसत्ता हमारे समाज की नींव से जुड़ी हुई है और हमारे रहने के ढंग पर अपना गहरा प्रभाव डालती है। इसी कारण इसको चुनौती देने का सबसे पहला तरीका है, इसके बारे में सबके सामने बात करना ।
2. 'ना’ बोलना सीखना
पितृसत्ता को चुनौती देने के लिए, हर उस चीज़ को नकारना और साफ़ ‘ना’ कहना जरूरी है जो पितृसत्ता के कारण, बस चली आ रही है।
जैसे – बाहर जाने पर लड़कियों को एक तय प्रकार के कपड़े पहनने चाहिए, एक तय समय तक लड़कियों को घर आ जाना चाहिए, लड़कियों को अपने से ज़्यादा अपने परिवार की परवाह करनी चाहिए, लड़कों को सबके सामने रोना नहीं चाहिए, बाहर के सारे काम लड़कों को करने चाहिए, कमजोर होने पर भी लड़कों को परिवार के सामने कमजोर नहीं पड़ना चाहिए, आदि।
3. पितृसत्ता को नकारती, फिल्मों को परिवार के साथ में देखना।
परिवार के साथ ऐसी फिल्मे देखें जिसमें पितृसत्ता को ‘नकारा’ और ‘गलत बताया’ गया हो। क्योंकि पितृसत्ता को चुनौती देने के लिए हर उस छोटी कोशिश को संबल देना जरूरी है जो उसके विपरित में काम रही हो।
4. जिम्मेदारियों का समान बंटवारा
पितृसत्ता महिलाओं को घर की हर जिम्मेदारियों से बांधता है। और पुरुषों को बाहर के काम सौंपता है। इसी कारण, पितृसत्ता को चुनौती देने के लिए हर तरह की जिम्मेदारियों का समान बंटवारा होना जरूरी है।
5. महिलाओं से जुड़ी चीजों पर, खुलकर बात करना।
महिलाओं से जुड़ी चीजों पर बात करने से अक्सर सब बचते हैं जैसे पीरियड्स (periods), मूड स्विंगस (mood swings), गर्भावस्था (pregnancy) ऐसी चीजों पर बात करने से यह सारी बातें सबके लिए नॉर्मल (normal) बन जाती है। और महिलाओं से जुड़ी चीजों का नॉर्मल होना, पितृसत्ता को चुनौती देता है।
6. पितृसत्ता को जगह देते, रीति-रिवाजों पर सवाल करना।
बाल-विवाह, छुआ-छूत, और दहेज प्रथा, जैसे रिवाजों पर भले ही हमारा संविधान रोक लगाता है। लेकिन आज भी ऐसे रिवाज माने जाते हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है पितृसत्ता की जकड़।
ऐसे रिवाजों के लिए, अपने स्तर पर आवाज उठाकर और सवाल करके, हम इनके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते है। और पितृसत्ता को चुनौती दे सकते है।
7. पुराने नज़रिए को बदलना
हमारे पुराने नज़रिए पर, पितृसत्ता हावी है। जैसे – लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना नहीं चाहिए, लड़कियों को हर जगह अपनी राय नहीं देनी चाहिए, केवल लंबे बालों से ही लड़कियों की शोभा होती है, आदि।
इसी कारण पितृसत्ता को चुनौती देने के लिए, पुराने नज़रिए को बदलना जरूरी है।
8. घर में हर चीज़ का समान बंटवारा होना
पितृसत्ता पुरुषों को स्त्रियों से बेहतर दर्जा देती है। और इसी कारण हर चीजों पर पुरुषों का हक ज्यादा रहता है।
जैसे – महिलाओं को पिता की संपत्ति से दूर रखना, बेटे को बेटी से बेहतर स्कूल में पढ़ाना, बेटे को जेब-खर्च ज्यादा देना, बेटियों से ही घर काम में मदद करने को कहना, आदि।
इन सब चीजों को नकार कर, पितृसत्ता को चुनौती देने के लिए, घर में हर चीज़ का समान बंटवारा करना बेहद जरूरी है।
9. माता-पिता को पितृसत्ता के जाल से रूबरू करवाना।
माँ-बाप को पितृसत्ता के जाल से रूबरू करवाना, बेहद जरूरी है।
जहां माँ को यह बताना जरूरी है कि – केवल सबकी फरमाइशें पूरी करने में ही अपना दिन मत खत्म कर दो, कभी खुद को भी पैम्पर (pamper) किया करो। तो वहीं पापा को यह समझाना जरूरी है कि – जब आप थक जाओ, तो बता दिया करो। और जब आपका मन उदास या परेशान हो तो हमसे छुपकर नहीं बल्कि हमसे गले लगकर दिल खोलकर, रो लिया करो।
बरसों से चली आ रही पितृसत्ता को घर में चुनौती देने के लिए, माँ-बाप ही एक कड़ी है।
10. परिवार के बाद, समाज को जगाने का प्रयास करना।
पितृसत्ता को चुनौती देने का सबसे पहला प्रयास घर से शुरू करना चाहिए। और छोटे-छोटे कदम लेकर, घर में चीजों को ठीक दिशा मे लाए। और फिर अपने स्तर पर, समाज को जगाने का प्रयास करें और परिवर्तन लाएँ।
पढ़िए : ”पितृसत्ता की पहली शिक्षा, घर से ही मिलती है” – रत्ना पाठक शाह