भारतीय सिनेमा में काम करने वाली पहली महिला
एक समय था जब हर क्षेत्र में पुरुषों का ही दबदबा हुआ करता था। हर क्षेत्र में काम करना सिर्फ पुरुषों के लिए आरक्षित हुआ करता था। महिलाओं का घर से बाहर जाकर कान करना गलत माना जाता था। ऐसा ही सिनेमा जगत में भी था। 20वीं सदी की शुरुआत में भारतीय सिनेमा केवल पुरुषों के लिए आरक्षित था। महिलाएं सिनेमा में काम करने का सोच भी नही सकती थी। ऐसे हालातों के बीच दुर्गाबाई कामत वो पहली महिला थी जिन्होंने हिन्दी सिनेमा में काम किया।
कौन थी दुर्गाबाई कामत?
दुर्गाबाई कामत का जन्म 1879 में ब्राह्मण समुदाय में हुआ था। उन्होंने सातवी कक्षा तक पढ़ाई की थी। कामत एक मराठी थिएटर कलाकार थी। उनके पति आनंद नानोस्कर, मुंबई के जैजे स्कूल ऑफ आर्टस में इतिहास के अध्यापक थे। 1903 में जब उनकी बेटी मात्र 3 साल की थी तब वे अपने पति से अलग हो गई थी।
उसके बाद उन्होंने अकेले अपनी बेटी की परवरिश की जिम्मेदारी ली। इसके बाद कामत ने एक ट्रैवलिंग थिएटर कंपनी के साथ काम करना शुरू किया। उनकी बेटी कमलाबाई भी उनके साथ ही ट्रैवलिंग थिएटर कंपनी के साथ घूमती रहती थी। क्योंकि उस समय महिलाओं के लिए यह पेशा अच्छा नही माना जाता था इसलिए ब्राह्मण समाज ने दुर्गाबाई को बहिष्कृत कर दिया था।
कैसे शुरू हुआ सिनेमा का सफर?
जब दादा साहब फाल्के ने अपनी पहली फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' बनाई तब उनकी फिल्म में सभी पुरुष कलाकार ही थे। महिला किरदारों की भूमिका भी पुरुषों ने निभाई थी। लेकिन दादा साहब जानते थे कि महिला किरदारों की भूमिका महिलाओं से अच्छा कोई नहीं निभा सकता।
दुर्गाबाई जिस थिएटर कंपनी में काम करती थी दादा साहब उसके संचालक को जानते थे। वहां से उनको दुर्गाबाई और कमलाबाई के बारे में जानकारी मिली। दादा साहब ने उन्हें फिल्म का प्रस्ताव दिया और वो मान गई।
मोहिनी भस्मासुर थी पहली और आखिरी फिल्म
1913 में आई फिल्म 'मोहिनी भस्मासुर' में पहली महिला कलाकार दुर्गाबाई और पहली बाल महिला कलाकार उनकी बेटी कमलाबाई ने काम किया था। दुर्गाबाई ने इस फिल्म में देवी पार्वती और कमलाबाई ने मोहिनी का किरदार निभाया था। इस माँ-बेटी की जोड़ी ने सबसे पहले सिनेमा में काम कर अन्य महिलाओं के लिए सिनेमा के दरवाजे खोले थे।
दुर्गाबाई कामत की यह पहली और आखिरी फिल्म थी इसके बाद उन्होंने फिल्मों में काम नहीं किया। 17 मई, 1997 को कामत का निधन होगया था। वो एक साहसी महिला थी जो इस पितृसत्तात्मक समाज के खिलाफ खड़ी हुई और लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी।