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बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy 2020) को मंजूरी दे दी। इस नीति का उद्देश्य मौजूदा स्कूल पाठ्यक्रम को पूरे तरीके से बदलने का है और बच्चों को क्रिटिकल थिंकिंग करने के लिए प्रोत्साहित करने के बारे में है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, 10 + 2 + 3 प्रणाली की शुरुआत के बाद से देश में स्कूल और उच्च शिक्षा क्षेत्र में काफी सुधार देखे जायेंगे।
यहां राष्ट्रीय शिक्षा नीति National Education Policy 2020 के बारे में उन सभी बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो निम्नलिखित हैं:
हमने इस बारें में Education Strategy, Policy and Research एक्सपर्ट मीता सेन गुप्ता से बात की. उन्होंने कहा कि माता-पिता को इस चुनौती का सामना करना पड़ेगा कि बच्चों के पास बहुत सी चोइसस हैं - सिर्फ स्कूल या भारत के एजुकेशन सिस्टम से नहीं बल्कि ऑनलाइन और पूरी दुनिये में कहीं पर भी पढ़ने का मौका। इसलिए माता पिता को अपने बच्चों को अच्छे से गाइड करना होगा। सिफर टैलेंट या रूचि को ध्यान में रखकर भविष्य कि प्लानिंग नहीं कर सकते। अपने बच्चे को एक अच्छी फील्ड चुनने में मदद करना माता पिता के लिए एक बड़ा काम होगा।
IGNOU से MA की एक और छात्रा सपना कहती हैं की यह सिस्टम काफी चल्लेंजिंग है। यह कुछ ऐसा है जो अब तक पहले कभी नहीं हुआ है। स्टूडेंट्स और टीचर्स का इस पर काफी अजीब रिएक्शन सामने आनेवाला है क्योंकि यह कुछ ऐसा है जो अब से पहले नहीं हुआ है और यह बहुत से क्रिटीरियास और थिंकिंग को बदलकर रख देगा।
पढ़िए : 10वी कक्षा की दो छात्रों ने नया Asteroid डिस्कवर किया जो जल्द ही पृथ्वी से पास करेगा
यहां राष्ट्रीय शिक्षा नीति National Education Policy 2020 के बारे में उन सभी बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो निम्नलिखित हैं:
- स्कूल परीक्षा प्रणाली 5 + 3 + 3 + 4 होगी जिसमें तीन साल की प्री-स्कूलिंग हो
- बोर्ड परीक्षा की काम होगी हिस्सेदारी। फोकस कॉन्सेप्ट्स के ज्ञान को टेस्ट करने पर ज़्यादा होगा।
- छात्रों को वर्ष में दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति होगी, एक मुख्य परीक्षा है और दूसरा सुधार के प्रयास के लिए छठी कक्षा से स्कूलों में वोकेशनल ट्रेनिंग शुरू होगी और इसमें इंटर्नशिप शामिल होगी।
- बोर्ड के स्ट्रक्चर में जोबदलाव हैं वो 2०21 से देखने को मिलेंगे
- नीति क्षेत्रीय भाषा (regional language) और मातृभाषा (mother tongue) में सीखने पर जोर देना चाहती है।
- हायर एजुकेशन कंमिशन यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन की जगह ले लेगी। कुछ समय में कॉलेजेस खुद डिग्री दे पाएंगे और उन्हें एफिलिएशन्स की ज़रुरत नहीं पड़ेगी
- मास्टर्स डिग्री के बाद पीएचडी से पहले एमफिल की जरूरत नहीं होगी।
माता पिता को इस निति के बारें में क्या समझना होगा
हमने इस बारें में Education Strategy, Policy and Research एक्सपर्ट मीता सेन गुप्ता से बात की. उन्होंने कहा कि माता-पिता को इस चुनौती का सामना करना पड़ेगा कि बच्चों के पास बहुत सी चोइसस हैं - सिर्फ स्कूल या भारत के एजुकेशन सिस्टम से नहीं बल्कि ऑनलाइन और पूरी दुनिये में कहीं पर भी पढ़ने का मौका। इसलिए माता पिता को अपने बच्चों को अच्छे से गाइड करना होगा। सिफर टैलेंट या रूचि को ध्यान में रखकर भविष्य कि प्लानिंग नहीं कर सकते। अपने बच्चे को एक अच्छी फील्ड चुनने में मदद करना माता पिता के लिए एक बड़ा काम होगा।
IGNOU से MA की एक और छात्रा सपना कहती हैं की यह सिस्टम काफी चल्लेंजिंग है। यह कुछ ऐसा है जो अब तक पहले कभी नहीं हुआ है। स्टूडेंट्स और टीचर्स का इस पर काफी अजीब रिएक्शन सामने आनेवाला है क्योंकि यह कुछ ऐसा है जो अब से पहले नहीं हुआ है और यह बहुत से क्रिटीरियास और थिंकिंग को बदलकर रख देगा।
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